Amitabh Bachchan: फिल्म कुली के इस सीन से मौत के मुंह में पहुंच गए थे बिग बी, जानिए वो अनोखा किस्सा

Amitabh Bachchan: बॉलीवुड के जाने माने कलाकार अमिताभ बच्चन को तो सभी जानते ही है। लेकिन अमिताभ बच्चन की सफलता के पीछे कई संघर्ष का राज छिपा हुआ है.फिल्मों में आने के पहले से ही अमिताभ ने संघर्ष करना शुरू कर दिया था। अमिताभ की जिंदगी का हर पहलू दिलचस्प है। उनकी उपलब्धियों को सुनना सभी को भाता है, लेकिन शायद ही किसी ने उनकी जिंदगी के संघर्ष की कहानी पढ़ी हो। आज मुंबई में रह कर करियर बनाना आसान नहीं है। इसका ये मतलब नहीं कि 70 के दशक में अमिताभ ने बड़ी ही आसानी से अपना करियर शुरू कर लिया था।
उन्होंने शुरूआती दिनो में जो फिल्में की वे बुरी तरह फ्लॉप होती जा रही थी . कई लोगों ने उन्हें घर लौट जाने की भी सलाह दी और कवि बनने की सलाह भी दे डाली। ‘जंजीर’ के हिट होने के पहले तक उन्हें जिंदगी में कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। करियर शुरू करने से राजनैतिक विफलता तक, एबीसीएल के दीवालिया होने से ‘कुली’ के हादसे तक, अमिताभ की जिदंगी के संघर्ष का हर किस्सा अपने-आप में प्रेरणा है। किसी की भी जिंदगी में इससे बेहतर क्या हो सकता है कि वो लड़खड़ाए, गिरे लेकिन फिर से उठ कर खड़ा हो जाए।

Amitabh bachchan

फ़िल्मी करियर की शुरुआत (Filmy Career of Amitabh Bachchan)

अमिताभ बच्चन ने अपने फिल्मी करियर की शुरूआत फिल्म ‘सात हिन्दुस्तानी'(1969) से की थी, अमिताभ की यह पहली फिल्म (सात हिन्दुस्तानी) दिल्ली के शीला सिनेमा में रिलीज हुई, तब अमिताभ ने पहले दिन अपने माता-पिता के साथ इसे देखा। उस समय अमिताभ जैसलमेर में सुनील दत्त की फिल्म रेशमा और शेरा की शूटिंग से छुट्टी लेकर सिर्फ इस फिल्म को देखने दिल्ली आए थे। उस दिन वे अपने पिता के ही कपड़े कुर्ता-पाजामा शॉल पहनकर सिनेमा देखने गए थे, क्योंकि उनका सामान जैसलमेर और मुंबई में था। इसी शीला सिनेमा में कॉलेज से तड़ी मारकर उन्होंने कई फिल्में देखी थीं। उस दिन वे खुद की फिल्म देख रहे थे। लेकिन यह फिल्म उनके करियर की सुपर फ्लॉप फिल्मों में से एक है। इसके बाद उन्होंने ‘रेशमा और शेरा'(1972) की जिसमें उनका रोल गूंगे की था और यह फिल्म भी फ्लॉप ही रही थी। हां, ‘आनंद'(1971) फ़िल्म ने जरूर पहचान दी थी, लेकिन उसके बाद दर्जनभर फ्लॉप फ़िल्मों की ऐसी लाइन लगी कि मुंबई के निर्माता निर्देशक उन्हें फ़िल्म में लेने से कतराने लगे।उन्हें फिल्में मिलनी बंद हो गईं। अमिताभ निराश होने लगे थे। मेहनत और टैलेंट के बाद भी जीवन में निराशा ही प्राप्त हो रही थी । लेकिन अमिताभ उन दिनों फ़िल्म लाइन में बुरे दौर से गुजर रहे थे। लंबे और पतली टांगों वाले अमिताभ को देखकर निर्माता मुंह बिचका लेता था। वे मुंबई से लगभग पैकअप करके वापस जाने का मन बना चुके थे।

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Amitabh Bachchan’s Struggling days: अमिताभ बच्चन के संघर्ष के दिन जारी थे. और इसी बीच अमिताभ को मॉडलिंग के ऑफर मिल रहे थे, लेकिन इस काम में उनकी कोई रुचि नहीं थी। जलाल आगा ने एक विज्ञापन कंपनी खोल रखी थी, जो विविध भारती के लिए विज्ञापन बनाती थी। जलाल, अमिताभ को वर्ली के एक छोटे से रेकॉर्डिंग सेंटर में ले जाते थे और एक-दो मिनट के विज्ञापनों में वे अमिताभ की आवाज का उपयोग किया करते थे। प्रति प्रोग्राम पचास रुपए मिल जाते थे। उस दौर में इतनी-सी रकम भी पर्याप्त होती थी, क्योंकि काफी सस्ता जमाना था। वर्ली की सिटी बेकरी में आधी रात के समय टूटे-फूटे बिस्कुट आधे दाम में मिल जाते थे। अमिताभ ने इस तरह कई बार रातभर खुले रहने वाले कैम्पस कॉर्नर के रेस्तराओं में टोस्ट खाकर दिन गुजारे और सुबह फिर काम की खोज शुरू।

इसी बीच सुनील दत्त के द्वारा बनायी जा रही फिल्म ‘रेशमा और शेरा’ डाकू समस्या पर बनी फिल्म थी और इसकी नायिका वहीदा रहमान थीं। अमिताभ ने इसमें एक गूँगे का रोल किया था, यानी उन्हें सिर्फ भावाभिनय करने का अवसर ही दिया गया था। कहते हैं कि इस फिल्म में पहले अमिताभ के भी डायलॉग थे, लेकिन बाद में वे डायलॉग विनोद खन्ना को दे दिए गए। अगर दत्त साहब ने उस फिल्म में अमिताभ से संवाद बुलवाए होते तो स्वयं उनके संवाद फीके पड़ जाते। अमिताभ की पसंद के खास हीरो-हीरोइन दिलीप कुमार और वहीदा रहमान हैं। ‘रेशमा और शेरा’ में गूँगे अमिताभ का विवाह वहीदा रहमान से कराया गया था। यह अमिताभ का पहली विवाह वाली फिल्म थी।

amitabh bachchan in zanzeer

ऋषिकेश मुखर्जी से अमिताभ बच्चन का परिचय (Amitabh Bachchan and Hrishikesh Mukherjee)

ऋषिकेश मुखर्जी से अमिताभ बच्चन का परिचय अब्बास साहब ने ही कराया था। वे उन्हें लेकर ऋषिदा की बांद्रा स्थित खोली पर गए थे। कहा था- ‘यह मेरे परिचित हरिवंशराय बच्चन का लड़का है। इसने मेरी फिल्म ‘सात हिन्दुस्तानी’ में बहुत अच्छा काम किया है। यह काम की तलाश में है। इसे अपनी किसी फिल्म में काम जरूर दीजिए।’ उन दिनों ऋषिकेश मुखर्जी ‘आनंद’ बनाने की सोच रहे थे। इस कहानी को उन्होंने राजेंद्रकुमार से लेकर जेमिनी के एस.एस. वासन तक को सुनाया था। तब सभी ने कहा था- इसमें रोमांस नहीं है। हीरो के सामने कोई हीरोइन नहीं है। किशोर कुमार और शशिकपूर से भी उन्होंने संपर्क किया था, पर बात बनी नहीं। तभी राजेश खन्ना इस फिल्म में काम करने के लिए अचानक तैयार हो गए। अब उन्हें डॉक्टर की भूमिका के लिए किसी अभिनेता की जरूरत थी और ऐसे में अब्बास साहब अमिताभ को लेकर उनके पास पहुँचे थे। इसके बाद उन्होंने ‘सात हिन्दुस्तानी’ फिल्म भी देख डाली और इस नतीजे पर पहुँचे कि बाबू मोशाय की अंतर्मुखी भूमिका के लिए अमिताभ को ही कास्ट किया जायगा ।

Amitabh Bachchan Hit Films: ‘आनंद’ और ‘परवाना’ फिल्मों में काम करने के बदले अमिताभ को तीस-तीस हजार रुपए मिलने लगे, इसलिए अमिताभ अनवर अली के फ्लैट को छो़ड़कर जुहू-पार्ले स्कीम में नार्थ-साउथ रोड पर सात नंबर के मकान में रहने लगे। अमिताभ की ‘आनंद’ फिल्म ने सफलता के झंडे गाड़ दिए थे। इसमें बच्चन सहाब ने तब के सुपर स्टार राजेश खन्ना के समक्ष जानदार अभिनय करके अच्छी लोकप्रियता हासिल कर ली थी। हालाँकि सफलता की मंजिल अभी भी दूर थी।
इस बीच अमिताभ को फिल्मों में ‘साइड रोल’ ही मिल रहे थे। शुरू की एक दर्जन फिल्में पूरी होने तक अमिताभ जीरो ही थे। इनमें ‘आनंद’ के अलावा एकमात्र ‘बॉम्बे टू गोवा’ फिल्म ही ऐसी थी, जिसमें अमिताभ के नटखट रोल को दर्शकों ने पंसद किया था। मेहमूद और एन.सी. सिप्पी इसके निर्माता थे। अनवर के कहने पर मेहमूद अमिताभ से मिलें।

‘जंजीर’ (1973) के सुपरहिट होने के पहले तक अमिताभ ने जिन एक दर्जन फिल्मों में काम किया, उनमें ‘बॉम्बे टू गोवा’/ परवाना/ आनंद/ रेशमा और शेरा तथा ‘सात हिंदुस्तानी’ के अलावा प्यार की कहानी/ बंसी-बिरजू/ एक नजर/ संजोग/ रास्ते का पत्थर/ गहरी चाल और बँधे हाथ नामक फिल्में भी थीं, जो बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह पिट गईं। फिल्म इंडस्ट्री में अमिताभ को ‘अपशकुनी’ हीरो माना जाने लगा।

सन्‌ 1972 की जुलाई में जंजीर की शूटिंग शुरू हुई। प्रकाश मेहरा निर्देशक के साथ ही इसके निर्माता भी थे। ‘जंजीर’ के लिए उन्होंने धर्मेन्द्र के समक्ष पार्टनरशिप का प्रस्ताव रखा था, पर वे राजी नहीं हुए। अभिनेता प्राण के पुत्र रोनी ने, जो अमिताभ का मित्र था, मेहरा के समक्ष फिल्म में अमिताभ को लेने का सुझाव दिया। तब तक अमिताभ से प्रकाश मेहरा की कोई जान-पहचान नहीं थी, बस ‘हलो-हाय’ के संबंध थे।

‘जंजीर’ में अमिताभ ने पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका की थी। पुलिस की वर्दी में वे जँचेंगे या नहीं, प्रकाश मेहरा को शक था। तब सलीम जावेद ने कहा था कि इस रोल के लिए अमिताभ बच्चन से अच्छी कोई चॉइस हो ही नहीं सकती। इस बात का विश्वास मेहरा को फिल्म की पहले दिन की शूटिंग के दौरान ही हो गया। हुआ यूँ कि पुलिस चौकी के इस दृश्य में खान के रूप में प्राण साहब आते हैं और इंस्पेक्टर अमिताभ के सामने रखी कुर्सी पर बैठने लगते हैं। प्राण को बैठने का अवसर भी न देते हुए अमिताभ कुर्सी को धकेलकर संवाद बोलते हैं- ‘ये पुलिस स्टेशन है, तुम्हारे बाप का घर नहीं…।’

फिल्म कुली में लग गई अमिताभ बच्चन को गंभीर चोट (Amitabh Bachchan and Coolie Film Incident)

उनकी फिल्‍में अच्‍छा बिजनेस कर रही थीं कि अचानक 26 जुलाई 1982 को कुली फिल्‍म की शूटिंग के दौरान उन्‍हें गंभीर चोट लगी गई। दरअसल, फिल्‍म के एक एक्‍शन दृश्‍य में अभिनेता पुनीत इस्‍सर को अमिताभ को मुक्‍का मारना था और उन्‍हें मेज से टकराकर जमीन पर गिरना था। लेकिन जैसे ही वे मेज की तरफ कूदे, मेज का कोना उनके आंतों में लग गया जिसकी वजह से उनका काफी खून बह गया और स्‍थिति इतनी गंभीर हो गई कि ऐसा लगने लगा कि वे मौत के करीब हैं लेकिन लोगों की दुआओं की वजह से वे ठीक हो गए।

amitabh bachchan in coolie

कुली में लगी चोट के बाद उन्‍हें लगा कि वे अब फिल्‍में नहीं कर पाएंगे और उन्‍होंने अपने पैर राजनीति में जमाने शुरू कर दिए । उन्‍होंने 8वें लोकसभा चुनाव में अपने गृह क्षेत्र इलाहाबाद की सीट से उ.प्र. के पूर्व मुख्‍यमंत्री एचएन बहुगुणा को काफी ज्‍यादा वोटों से हराया। राजनीति में ज्‍यादा दिन वे नहीं टिक सके और फिर उन्‍होंने फिल्‍मों को ही अपने लिए उचित समझा।
जब उनकी कंपनी एबीसीएल आर्थिक संकट से जूझ रही थी तब उनके मित्र और राजनी‍तिज्ञ अमर सिंह ने उनकी काफी मदद की थी। बाद में अमिताभ ने भी अमर सिंह की समाजवादी पार्टी को काफी सहयोग किया। उनकी पत्‍नी जया बच्‍चन ने समाजवादी पार्टी को ज्‍वाइन कर लिया और वे राज्‍यसभा की सदस्‍य बन गईं। अमिताभ ने पार्टी के लिए कई विज्ञापन और राजनीतिक अभियान भी किए। फिल्‍मेां से एक बार फिर उन्‍होंने वापसी की और फिल्‍म ‘शहंशाह’ हिट हुई। इसके बाद उनके अग्निपथ में निभाए गए अभिनय को भी काफी सराहा गया और इसके लिए उन्‍हें राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कार भी मिला लेकिन उस दौरान बाकी कई फिल्‍में कोई खास कमाल नहीं दिखा स‍की।

अमिताभ बच्चन की फिल्मी जगत में वापसी (Return of Amitabh Bachchan in the Bollywood Industry)

2000 में आई मोहब्‍बतें उनके डूबते करियर को बचाने में काफी मददगार साबित हुई और फिल्‍म को और उनके अभिनय को काफी सराहा गया। इसके बाद उन्‍होंने कई फिल्‍मों में काम किया जिसे आलोचकों के साथ साथ दर्शकों ने भी काफी पसंद किया।

2005 में आई फिल्‍म ‘ब्‍लैक’ में उन्‍होंने शानदार अभिनय किया और उन्‍हें राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कार से एक बार फिर सम्‍मानित किया गया।

फिल्‍म पा में उन्‍होंने अपने बेटे अभिषेक बच्‍चन के ही बेटे का किरदार निभाया। फिल्‍म को काफी पसंद किया गया और एक बार फिर उन्‍हें राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कार से नवाजा गया। वे काफी लंबे समय से गुजरात पर्यटन के ब्रांड एंबेसडर भी हैं।

उन्‍होंने टीवी की दुनिया में भी बुलंदियों के झंडे गाड़े हैं और उनके द्वारा होस्‍ट किया गया केबीसी बहुत पापुलर हुआ। इसने टीआरपी के सारे रिकार्ड तोड़ दिए और इस प्रोग्राम के जरिए कई लोग करोड़पति बने।

अमिताभ बच्चन की प्रसिद्ध फिल्में (Famous Movies of Amitabh Bachchan)
सात हिंदुस्तानी, आनंद, जंजीर, अभिमान, सौदागर, चुपके चुपके, दीवार, शोले, कभी कभी, अमर अकबर एंथनी, त्रिशूल, डॉन, मुकद्दर का सिकंदर, मि. नटवरलाल, लावारिस, सिलसिला, कालिया, सत्ते पे सत्ता, नमक हलाल, शक्ति, कुली, शराबी, मर्द, शहंशाह, अग्निपथ, खुदा गवाह, मोहब्बतें, बागबान, ब्लैक, वक्त, सरकार, चीनी कम, भूतनाथ, पा, सत्याग्रह, शमिताभ जैसी शानदार फिल्मों ने ही उन्हें सदी का महानायक बना कर दिया।

उनके ऊपर कई किताबें भी लिखी जा चुकी है. (Books about Amitabh Bachchan)
अमिताभ बच्‍चन: द लिजेंड 1999 में, टू बी ऑर नॉट टू बी: अमिताभ बच्‍चन 2004 में, एबी: द लिजेंड (ए फोटोग्राफर्स ट्रिब्‍यूट) 2006 में, अमिताभ बच्‍चन: एक जीवित किंवदंती 2006 में, अमिताभ: द मेकिंग ऑफ ए सुपरस्‍टार 2006 में, लुकिंग फॉर द बिग बी: बॉलीवुड, बच्‍चन एंड मी 2007 में और बच्‍चनालिया 2009 में प्रकाशित हुई हैं।

आज का दौर सोशल मीडिया का है। और खबरो का सिलसिला पल पल में इंटरनेट पर अपलोड होता रहता हैं। ऐसे में हमारे बिगबी कहां पीछे रहने वाले हैं। वे भी फेसबुक, ट्विटर का जमकर इस्‍तेमाल करते हैं और यही कारण है कि दोनों सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर उनके फैंस की संख्‍या लाखों-करोड़ों में हो चुकी है। वे अपने प्रंशसको को कभी नहीं निराश करते हैं और पल पल की घटनाओं को वे इन माध्‍यमों के जरिए शेयर करते हैं।

– Inderjeet

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