Raaj Kumar: राजकुमार साहब क्यों नहीं चाहते थे अंतिम समय में कोई उनका मुंह देखें?

Raaj Kumar: ‘ना तलवार की धार से ना गोलियों की बौछार से, बंदा डरता है तो सिर्फ परवर्दिगार से’ ये डायलॉग है दमदार आवाज़ के बादशाह राजकुमार साहब की फिल्म तिरंगा का। राजकुमार साहब बॉलीवुड इंडस्ट्री में अपने भारीभरकम आवाज और बेहतरीन स्क्रीन प्रेजेंस की वजह से खूब सराहये गए।
बॉलीवुड में राज कुमार का नाम उन दिग्गज कलाकार में लिया जाता है। जो हमेशा याद करें जाते है। उनका एक डायलाग इस प्रकार है कि हमारी जुबान भी हमारी गोली की तरह है, दुश्मन से सीधी बात करती है’। अपनी दमदार आवाज के लिए पहचाने जाने वाले राजकुमार ने अपनी बेहतरीन एक्टिंग से एक खास जगह बनाई। उनकी दमदार आवाज में बोला गया तकिया कलाम ‘जानी’ आज भी फैंस की जुबां पर चढ़ा हुआ है। सिनेमा जगत में आने से पहले राजकुमार साहब मुंबई पुलिस में नौकरी करते थे।

जन्म और शुरुआती जीवन (Raaj Kumar Birth and Early Life)
राजकुमार का जन्म 8 अक्टूबर 1926 को बलूचिस्तान (पाकिस्तान) में कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ था। राजकुमार का असली नाम कुलभूषण पंडित था और उनको प्यार से करीबी लोग ‘जानी’ के नाम से पुकारते थे। राजकुमार 1940 में मुंबई आए और मुंबई पुलिस में सब इंस्पेक्टर के रूप में काम करने लगे।
राजकुमार की मुलाकात जेनिफर से हुई थी, जो एक एयरहोस्टेस थी। बाद में दोनों ने शादी कर ली और जेनिफर ने अपना नाम बदलकर ‘गायत्री’ रख लिया।

(All images are taken from google)

एक दिन बातचीत के दौरान एक सिपाही ने राजकुमार से कहा कि अगर साहब आप रंग-ढंग और कद-काठी में किसी हीरो से कम नहीं लगते यदि फ़िल्मों में हीरो बन जायें तो लाखों दिलों पर राज कर सकते हैं और राजकुमार को सिपाही की यह बात घर कर गयी।

Read More: The Kashmir Files बनाने वाले Vivek Agnihotri की जीवन से जुड़े ये राज नहीं जानते होंगे आप

फ़िल्मी करियर की शुरुआत (Filmy Career Of Raaj Kumar)
राजकुमार मुंबई के जिस थाने मे काम करते थे। वहां अक्सर फ़िल्म उद्योगो के बड़े बड़े कलाकार का आना-जाना लगा रहता था। एक बार पुलिस स्टेशन में फ़िल्म निर्माता बलदेव दुबे कुछ जरूरी काम के लिए आये हुए थे। वह राजकुमार के बातचीत करने के अंदाज से काफी प्रसन्न हो गए थे और उन्होंने राजकुमार को अपनी फ़िल्म ‘शाही बाजार’ में अभिनेता के रूप में काम करने की प्रस्ताव दिया। राजकुमार तो पहले से ही सिपाही की बात सुनकर अभिनेता बनने का मन बना चुके थे। इसलिए उन्होंने तुरंत ही अपनी सब इंस्पेक्टर की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और फिल्म निर्माता की यह प्रस्ताव स्वीकार कर ली।

रिश्तेदारों के ताने और सफलता के लिए संघर्ष
नौकरी छोड़ने के बाद राजकुमार को अपना जीवनयापन करना भी मुश्किल हो गया था, इसलिए राजकुमार ने वर्ष 1952 मे प्रदर्शित फ़िल्म ‘रंगीली’ में एक छोटी सी भूमिका स्वीकार कर ली। यह फ़िल्म सिनेमा घरों में कब आयी और कब चली गयी इसका पता ही नहीं चला। इस बीच उनकी फ़िल्म ‘शाही बाजार’ भी पर्दे पर प्रदर्शित हुई। जो बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह मुंह के बल गिरी।
शाही बाजार की असफलता के बाद राजकुमार के तमाम रिश्तेदार यह कहने लगे कि तुम्हारा चेहरा फ़िल्म के लिये नहीं बना है और कुछ लोग कहने लगे कि तुम खलनायक का किरदार निभा सकते हो। वर्ष 1952 से 1957 तक राजकुमार फ़िल्म इंडस्ट्री में राजकुमार अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे।

‘रंगीली’ के बाद राजकुमार को जैसी भी भूमिका मिली राजकुमार उसे स्वीकार करते चले गए। इसी बीच उन्होंने ‘अनमोल’ ‘सहारा’, ‘अवसर’, ‘घमंड’, ‘नीलमणि’ और ‘कृष्ण सुदामा’ जैसी कई फ़िल्मों में अभिनय किया लेकिन इनमें से कोई भी फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हो पा रही थी।

वर्ष 1957 में प्रदर्शित महबूब ख़ान की फ़िल्म मदर इंडिया में राज कुमार गांव के एक किसान की छोटी सी भूमिका में दिखाई दिए। हालांकि यह फ़िल्म पूरी तरह अभिनेत्री नरगिस पर केन्द्रित थी फिर भी राज कुमार ने अपनी छोटी सी भूमिका में अपने अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब रहे। इस फ़िल्म में उनके दमदार अभिनय के लिए उन्हें अंतर्राष्ट्रीय ख्याति भी मिली और फ़िल्म की सफलता के बाद राज कुमार बतौर अभिनेता फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गए।

Humraaz

फ़िल्मों में मिली कामयाबी (Raaj Kumar Stardum and Success)

वर्ष 1959 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘पैग़ाम’ में उनके सामने हिन्दी फ़िल्म जगत के अभिनय सम्राट दिलीप कुमार थे लेकिन राज कुमार ने यहाँ भी अपनी सशक्त भूमिका के ज़रिये दर्शकों की वाहवाही लूटने में सफल रहे। इसके बाद राज कुमार ‘दिल अपना और प्रीत पराई-1960’, ‘घराना- 1961’, ‘गोदान- 1963’, ‘दिल एक मंदिर- 1964’, ‘दूज का चांद- 1964’ जैसी फ़िल्मों में मिली कामयाबी के ज़रिये राज कुमार दर्शको के बीच अपने अभिनय की धाक जमाते हुए ऐसी स्थिति में पहुँच गये जहाँ वह फ़िल्म में अपनी भूमिका स्वयं चुन सकते थे। वर्ष 1965 में प्रदर्शित फ़िल्म काजल की जबर्दस्त कामयाबी के बाद राज कुमार बतौर अभिनेता अपनी अलग पहचान बना ली। वर्ष 1965 बी.आर.चोपड़ा की फ़िल्म वक़्त में अपने लाजवाब अभिनय से वह एक बार फिर से अपनी ओर दर्शक का ध्यान आकर्षित करने में सफल रहे। फ़िल्म वक़्त में राज कुमार का बोला गया एक संवाद “चिनाय सेठ जिनके घर शीशे के बने होते है वो दूसरों पे पत्थर नहीं फेंका करते या फिर चिनाय सेठ ये छुरी बच्चों के खेलने की चीज़ नहीं हाथ कट जाये तो ख़ून निकल आता है” दर्शकों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुआ। फ़िल्म वक़्त की कामयाबी से राज कुमार शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुँचे। ऐसी स्थिति जब किसी अभिनेता के सामने आती है तो वह मनमानी करने लगता है और ख्याति छा जाने की उसकी प्रवृत्ति बढ़ती जाती है और जल्द ही वह किसी ख़ास इमेज में भी बंध जाता है। लेकिन राज कुमार कभी भी किसी ख़ास इमेज में नहीं बंधे इसलिये अपनी इन फ़िल्मो की कामयाबी के बाद भी उन्होंने ‘हमराज़- 1967’, ‘नीलकमल- 1968’, ‘मेरे हूजूर- 1968’, ‘हीर रांझा- 1970’ और ‘पाकीज़ा- 1971’ में रूमानी भूमिका भी स्वीकार की जो उनके फ़िल्मी चरित्र से मेल नहीं खाती थी इसके बावजूद भी राज कुमार यहाँ दर्शकों का दिल जीतने में सफल रहे।

अभिनय और विविधता
वर्ष 1978 में प्रदर्शित फ़िल्म कर्मयोगी में राज कुमार के अभिनय और विविधता के नए आयाम दर्शकों को देखने को मिले। इस फ़िल्म में उन्होंने दो अलग-अलग भूमिकाओं में अपने अभिनय की छाप छोड़ी। अभिनय में एकरुपता से बचने और स्वयं को चरित्र अभिनेता के रूप में भी स्थापित करने के लिए राज कुमार ने अपने को विभिन्न भूमिकाओं में पेश किया। इस क्रम में वर्ष 1980 में प्रदर्शित फ़िल्म बुलंदी में वह चरित्र भूमिका निभाने से भी नहीं हिचके और इस फ़िल्म के जरिए भी उन्होंने दर्शको का मन मोहे रखा। इसके बाद राज कुमार ने ‘कुदरत- 1981’, ‘धर्मकांटा- 1982’, ‘शरारा- 1984’, ‘राजतिलक- 1984’, ‘एक नयी पहेली- 1984’, ‘मरते दम तक- 1987’, ‘सूर्या- 1989’, ‘जंगबाज- 1989’, ‘पुलिस पब्लिक- 1990’ जैसी कई सुपरहिट फ़िल्मों के ज़रिये दर्शको के दिल पर राज किया।

Read More: The Greatest Showman: RAJ KAPOOR (Biography)

वर्ष 1991 में प्रदर्शित फ़िल्म सौदाग़र में राज कुमार के अभिनय के नये आयाम देखने को मिले। सुभाष घई की निर्मित फ़िल्म सौदाग़र में दिलीप कुमार और राज कुमार वर्ष 1959 में प्रदर्शित पैग़ाम के बाद दूसरी बार आमने सामने थे। फ़िल्म में दिलीप कुमार और राज कुमार जैसे अभिनय की दुनिया के दोनो महारथी का टकराव देखने लायक़ था। फ़िल्म सौदाग़र में राज कुमार का बोला एक संवाद “दुनिया जानती है कि राजेश्वर सिंह जब दोस्ती निभाता है तो अफ़साने बन जाते हैं मगर दुश्मनी करता है तो इतिहास लिखे जाते है” आज भी सिने प्रेमियों के दिमाग में गूंजता रहता है। ‘तिरंगा’ में ‘ना तलवार की धार से ना गोलियों की बौछार से…’आज भी हमारे दिलों में गूंजता है।

dileep kumar and raaj kumar sahab

क्यों कहा था राजकुमार साहब ने की अंतिम समय में उनका मुंह कोई न देखें? (Raaj Kumar death reason)
अपने संजीदा अभिनय से लगभग चार दशक तक दर्शकों के दिल पर राज करने वाले महान अभिनेता राज कुमार 3 जुलाई 1996 के दिन इस दुनिया को अलविदा कह गए। इनकी अभिनय की छाप आज भी हिंदी सिनेमा में साफ़ दिखाई देती है लेकिन नियति का ये दुर्भाग्य भी इन्हीं के साथ जुड़ा रहा कि जो राजकुमार अपनी दमदार आवाज की वजह से लाखों दिलों पर राज करते थे।अंत समय में उनकी इसी आवाज ने उनका साथ छोड़ दिया और गले का कैंसर हो जाने की वजह से इनका निधन हो गया। अपने अंतिम समय में राजकुमार साहब की ये अंतिम इच्छा थी कि कोई उनका मुंह नहीं देखेगा।

प्रमुख फिल्में

1995 जवाब
1994 बेताज बादशाह
1993 इंसानियत के देवता
1993 तिरंगा
1992 पुलिस और मुज़रिम
1991 सौदागर
1990 पुलिस पब्लिक
1989 सूर्या:एक जागृति
1989 जंगबाज़
1989 देश के दुश्मन शेर खान
1989 गलियों का बादशाह
1988 मोहब्बत के दुश्मन
1988 साजिश
1988 महावीरा
1987 इतिहास
1987 मरते दम तक
1987 मुकद्दर का फैसला
1984 एक नई पहेली
1984 सहारा
1984 राज तिलक
1982 धर्म काँटा
1981 कुदरत
1980 चम्बल की कसम
1980 बुलन्दी
1978 कर्मयोगी
1976 एक से बढ़कर एक
1974 ३६ घंटे
1973 हिन्दुस्तान की कसम
1972 दिल का राजा
1971 लाल पत्थर
1971 मर्यादा
1971 पाकीज़ा
1970 हीर राँझा
1968 मेरे हुज़ूर
1968 वासना
1968 नीलकमल
1967 नई रोशनी
1967 हमराज़
1965 वक्त
1965 रिश्ते नाते
1965 ऊँचे लोग
1965 काजल
1964 ज़िंदगी
1963 प्यार का बंधन कालू
1963 फूल बने अंगारे
1963 गोदा
1963 दिल एक मन्दिर
1961 घराना
1960 दिल अपना और प्रीत पराई
1959 अर्द्धांगिनी
1959 उजाला
1959 शरारत
1959 पैग़ाम
1958 पंचायत
1957 मदर इण्डिया
1957 कृष्ण-सुदामा
1957 नौशेरवान-ए-आदिल

पुरस्कार
राज कुमार ने ‘दिल एक मंदिर’ और ‘वक़्त’ के लिए फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार प्राप्त किया।

– Inderjeet

Check On YouTube

1 thought on “Raaj Kumar: राजकुमार साहब क्यों नहीं चाहते थे अंतिम समय में कोई उनका मुंह देखें?”

  1. Pingback: The Greatest Showman: RAJ KAPOOR (Biography) – Articles daily

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top