History Of 4 Gates In Delhi: जानिए क्यों बनाये गए थे दिल्ली में इतने सारे गेट्स

History Of 4 Gates In Delhi: दिल्ली जो अपनी ऐतिहासिक धरोहरों और पुरानी इमारतों के लिए जानी जाती है. देश की राजधानी दिल्ली की खूबसूरती यहां पर स्थित ऐतिहासिक इमारतों की वजह से और निखर आती है. यहां पर कई सारी पुरानी और हवेलियां और गेट्स हैं. दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों में कई सारे सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व वाले इमारतें और जगहें मौजूद हैं. जैसे पुरानी दिल्ली में देश का लाल किला है जहां पर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के दिन देश के प्रधानमंत्री तिरंगा फहरा कर राष्ट्र के नाम सम्बोधन करते हैं. साथ ही यहां पर जामा मस्जिद, गालिब की हवेली आदि हैं. तो वही दूसरी तरफ नई दिल्ली में इंडिया गेट, राष्ट्रपति भवन, संसद भवन हैं. साउथ दिल्ली में कुतुबमीनार, हुमायूं का मकबरा अन्य प्राचीन इमारतें हैं. दिल्ली को प्राचीन समय में दरवाजों का शहर कहा जाता था क्योंकि यहां पर कई सारे दरवाजे स्थित है जिनका ऐतिहासिक दृष्टिकोण से बहुत महत्व है. आज इस आर्टिकल में हम दिल्ली में स्थित इन्हीं दरवाजों के बारे में विस्तार से जानेंगे. (History Of 4 Gates In Delhi)

कश्मीरी गेट, दिल्ली( Kashmiri gate)

 कश्मीरी गेट दिल्ली का वह पुराना दरवाजा है जहां पर आज बस अड्डा और मेट्रो स्टेशन है. यहां पर महाराणा प्रताप अंतर्राज्यीय बस अड्डा है लेकिन क्या आपको कश्मीरी गेट के इतिहास के बारे में पता है ? कि आखिर ये गेट किसने और  क्यों बनवाया था? तो आई ये जानते है इसके इतिहास के बारे में.

कश्मीरी गेट का निर्माण एक सैनिक अभियांत्रिक रॉबोर्ट स्मिथ द्वारा 1835 मे करवाया गया था कश्मीरी दरवाज़ा दिल्ली के लाल किले के निकट पुराने दिल्ली शहर ( शाहजनबाद ) का एक मुखी द्वार हुआ करता था. इसका उत्तरी मुख कश्मीर की तरफ होने से इस दरवाजे का नाम कश्मीरी दरवाजा रखा गया। यहां से निकलने वाली सड़क कश्मीर की ओर जाती है और  वर्तमान में यह जगह उत्तर-पूर्व दिल्ली में है. (History Of 4 Gates In Delhi)

कश्मीरी गेट पर भारतीय सैनिकों ने ब्रिटिश सैनिकों पर हमला भी किया था. दरअसल ये विद्रोह ब्रिटिश सैनिकों को दिल्ली के अंदर ना आने देने के लिए की गयी थी। इस क्षेत्र ( कश्मीरी गेट ) पर भारतीय सैनिक एकत्रित होकर विद्रोहियों के खिलाफ़ रणनीति तैयार करते थे और ब्रिटिश सेनाओं को प्रतिरोध देने की योजनाएं बनाने में प्रयोग किया करते थे। आज दिखाई देने वाली दीवार में उस समय के हमलों के साक्ष्य तोप के गोलों से हुई क्षति के निशानों के रूप में आज भी विदित हैं. लेकिन 14 सितम्बर 1857 की सुबह को ब्रिटिश सैनिको ने एक पुल और दरवाज़े का बायां भाग बारूद के प्रयोग से तोड़ दिया ओर उसमें से रास्ता बनाकर दिल्ली को पुनराधिग्रहण किया था और फिर ये विद्रोहों समाप्त हो गया.

अजमेरी गेट, चाँदनी चौक, दिल्ली ( Ajmeri Gate, chandni chowk, Delhi )

 अजमेरी गेट दिल्ली के प्राचीन गेट में से एक गेट है. जिसका का एक अपना अलग ही इतिहास है लेकिन कई सालों से ये गेट ट्रैफिकों के बीच में गायब सा हो गया है. गेट की ओर से एक सड़क नई दिल्ली रेलवे स्टेशन को जाती है, दूसरी रेड लाइट एरिया व दिल्ली की सबसे पुराने हार्डवेयर हब जी बी रोड को, तीसरी चावड़ी बाज़ार की तरफ और चौथी है आसफ अली रोड. जिसे देखकर ऐसा लगता है कि मानों यह ट्रैफिक के बीच में फस गया हो. इसके इतिहास की बात करें तो समाज सुधारक बिपिन चंद्र सेन ने 1890 में कई तवायफों को चावड़ी बाज़ार से निकालकर अजमेरी गेट से बाहर गास्टियन बैस्टिन रोड (यानी जी बी रोड) पर भेज दिया था और आज भी जी बी रोड रेड लाइट एरिया के नाम से ही जानी जाती है. (History Of 4 Gates In Delhi)

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अगर बात की जाये की इस दरवाज़े का नाम अजमेरी गेट कैसे पड़ा ? तो ये बात मुगल काल के दौरान की है, जब इसका निर्माण 1644 से 1649 के बीच शाहजहांनाबाद की दीवार के 14 दरवाज़ो में से एक कराया गया था इस दरवाज़े का मुख राजस्थान के अजमेर की ओर था जिस वजह से इस दरवाज़े का नाम अजमेरी दरवाज़ा रखा गया.

लाहौरी गेट, दिल्ली( Lahori Gate )

 लाल पत्थरों से बनी एक बेहद ही खूबसूरत इमारत लाल किला जिसका निर्माण शाहजहां द्वारा कराया गया था. इसे देखने आज बहुत से लोग आते हैं और आखिरकार लाल किला के बारे में कौन नहीं जानता? इस खूबसूरत इमारत को देखने के लिए तो विदेशों से भी कई लोग आते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि लाल किले का भव्य दरवाजा लाहौरी दरवाजा के नाम से जाना जाता है? दरअसल इस दरवाजे का मुख लाहौर की तरफ है जो कि अब वर्तमान समय में पाकिस्तान में है. जिस वजह से इस दरवाजे का नाम लाहौरी दरवाजा रखा गया.

लाहौरी दरवाजे का निर्माण कुछ इस प्रकार हुआ था कि जब भी बादशाह अपने सिंहासन पर दीवान – ए – आम पर बैठते थे तो उन्हें यहाँ से पूरा चांदनी चौेक नज़र आता था परन्तु बाद में औरंजेब ने यहाँ दरवाज़ा बंद कर दिया और उसके दांये तरफ ही एक और दरवाज़ा बना दिया गया.

दिल्ली गेट( Delhi Gate )

 दिल्ली दरवाजा दिल्ली शहर के दक्षिण की ओर का नगर रक्षक द्वार था। ये पुरानी दिल्ली के क्षेत्र नेता जी सुभाष मार्ग और नई दिल्ली के क्षेत्र बहादुर शाह ज़फ़र के बीचोंबीच में स्थित है. इस दरवाजे का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने 1638 में दिल्ली के सातवें शहर तथा तत्कालीन राजधानी शहर शाहजहानाबाद की घेराबन्दी करती रक्षक दीवार के प्रवेशद्वार के रूप में करवाया था.

आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाहजहां इस दरवाजे का इस्तेमाल नमाज़ पढ़ने और मस्जिद जाने के लिए किया करते थे. इस दरवाजे को पहले हाथी पोल के नाम से भी जाना जाता था क्योंकि यहां द्वार के निकट ही दो हाथियों की मूर्तियां बनी हुई थी. जिस वजह से इससे हाथी पोल भी बताया जाता था.

वर्तमान समय में ये दिल्ली की ऐतिहासिक स्मारक रूप में संरक्षित की गयी है और अब इसकी देखरेख की जिम्मेदारी भारतीय पुरातात्त्विक सर्वेक्षण विभाग की है. तो ये थी दिल्ली के ऐतिहासिक दरवाज़े जो आज भी मौजूद है.

Palak Mujral

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