Monkeypox Virus Hindi News: आज के समय में तेजी से संक्रमण वाली कई बीमारियां फैल रही है. कोरोनावायरस के आने के बाद से कई लोगों की जान चली गई, तो कई लोग अभी भी इसकी चपेट में है. अभी लोग ठीक से कोरोना से उभरे थे कि दुनिया के इस हिस्से में एक और दुर्लभ वायरस से फैलने वाली बीमारी ने दस्तक दे दी है.
इस बीमारी को मंकीपॉक्स वायरस (Monkeypox Virus Hindi News) के नाम से जाना जाता है. हालही में ब्रिटेन में एक आदमी को इस वायरस से ग्रसित पाया गया है. तो चलिए जानते हैं कि आखिर ये मंकीपॉक्स वायरस क्या है और इसके लक्षण क्या है और इससे कैसे बचा जा सकता है.
50 साल पहले मिला था पहला केस (Monkeypox Virus Hindi News)
ब्रिटेन की स्वास्थ्य सुरक्षा एजेंसी के मुताबिक मंकीपॉक्स वायरस एक रेयर बीमारी है, जो लोगों को संक्रमण के द्वारा नहीं फैलती है और इससे ग्रसित व्यक्ति एक हफ्ते में ठीक भी हो जाता है, लेकिन कई बार ये गंभीर भी हो जाती है. मंकीपॉक्स वायरस का पहला केस आज से 50 साल पहले आया था. इस बीमारी की खोज 1958 में हुआ था, जब शोध के लिए लाए गए बंदरों में इस बीमारी के लक्षण पाए गए. तभी से इसका नाम मंकीपॉक्स वायरस रखा गया.

शरीर के इन अंगों को करता है संक्रिमत
डब्लूएचओ के अनुसार ये बीमारी इंसान के हाथों की हथेलियों और पैरों के तलवों, ओरल म्यूकस मेंब्रेन, जननांग और कंजंक्टिवा के अलावा कॉर्निया को भी काफी प्रभावित करता है. इससे ग्रसित व्यक्ति की त्वचा फटने लगती है, और उन्हें 2-3 दिन काफी बुखार भी आता है. साथ ही डब्लूएचओ का ये भी कहना है कि इस बीमारी के लक्षण आमतौर पर 6-13 दिनों का होता है. तो कई बार ये 5-21 दिनों तक भी रहता है. इसमें आपके चेहरे पर चेचक की तरह काफी ज्यादा हो जाते हैं.

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ब्रिटेन में कैसे पहुंचा ये वायरस
Monkeypox Virus Hindi News: ब्रिटेन में इस बीमारी से ग्रसित एक नाइजीरिया के व्यक्ति में पाया गया. जिसका इलाज सेंट थॉमस अस्पताल में हो रहा है. इस बीमारी का पहला ह्यूमन ट्रांसमिशन केस 50 साल पहले 1970 में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में पाया गया था. डब्लूएचओ के अनुसार इस बीमारी का ट्रांसमिशन रक्त, शारीरिक तरल पदार्थ, या संक्रमित जानवरों के त्वचीय या श्लेष्मा घावों के सीधे संपर्क से हो सकता है.
क्या है मंकीपॉक्स वायरस का सही इलाज? Treatment of Monkeypox Virus Hindi News
डब्लूएचओ के मुताबिक इस बीमारी के लिए किसी खास प्रकार टीके या इलाज की सिफारिश नहीं हुई है. ऐसे में इस बीमारी से ग्रसित लोगों को बचपन में चेचक के लिए लगने वाले टीके ही लगाए जाते हैं और ये लगभग 85 फीसदी करगर होता है.