V P Singh Story: जानिए क्यों लोग पूर्व प्रधानमंत्री वी पी सिंह को ‘राजा नहीं रंक हैं, देश का कलंक हैं’ कहते थे?

Know Your Prime Ministers: The way people are being displaced, who can stop the arrival of Maoism! ( जिस तरह से लोग विस्थापित हो रहे हैं, माओवाद को कौन रोक सकता हैं) – V P Singh Story

विश्वनाथ प्रताप सिंह (V P Singh Story)

“Know Our Prime Ministers” सीरीज के इस भाग हम आज एक ऐसे प्रधानमंत्री के बारे में बता करने जा रहे हैं जिन्हें राजनीतिक इतिहास में लोग देश का कलंक कहकर पुकारते हैं.


वी.पी. सिंह भारत के आठवें प्रधानमंत्री थे परन्तु आज़ाद भारत के सबसे दमदार राजनीतिक शख्सियतों में से एक नहीं बन सके. उन्होंने राजनीतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे कठिन लड़ाई लड़ी, रक्षा सौदों में दलाली के खिलाफ सत्ता से विद्रोह भी किया. भारतीय राजनीतिक इतिहास के वो पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्होंने अपनी ही सरकार की नीतियों का पुरजोर विरोध किया था. उन्होंने प्रधानमंत्री राजीव गांधी की नेतृत्व वाले सरकार में कैबिनेट मंत्री रहते हुए अपनी कैबिनेट का विरोध करने का साहस दिखाया था.


V P Singh Story: वी पी सिंह देश के इकलौते ऐसे नेता थे जिसने लोकप्रियता की सीढ़ियों में उतार-चढ़ाव दोनों का स्वाद चखा था. जहाँ एक तफर देश के लोगों ने उनके लिए नारा दिया ‘राजा नहीं, फकीर हैं, देश की तकदीर हैं’ क तो वहीं दूसरी तरफ उन्हें जातिवादी और सवर्ण विरोधी बताकर लोगों ने उन्हें ‘राजा नहीं रंक हैं, देश का कलंक हैं ’ कहकर सम्बोधित किया.

वी.पी. सिंह बख़ूबी विभिन्न विरोधाभाषी विचारधाराओं को साथ लेकर चलते थे. वह भारत के पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिन्हें दक्षिणपंथी भाजपा के साथ ही वामपंथी पार्टियों का समर्थन भी प्राप्त था. वी पी सिंह के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय मोर्चे में तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी), द्रविड़ मुन्नेत्र कझगम (डीएमके) तथा असम गण परिषद (अगप) जैसी पार्टियां शामिल थीं और इस मोर्चे का समर्थन भाजपा के साथ ही वामपंथी पार्टियां भी कर रही थीं. इन सब का मंतव्य एक था, वी.पी. सिंह की पुरानी पार्टी कांग्रेस को सत्ता से दूर रखना. ये कहना गलत नहीं होगा कि सिंह द्वारा बनाई गई सरकार में उदारवादी, वामपंथियों के साथ ही कट्टर दक्षिणपंथियों का अजीब संयोजन था. उन्होंने बड़ी चतुराई से ना केवल भाजपा व आरएसएस तथा वामपंथी पार्टियों को केवल ‘राजीव गांधी’ के विरोध में सिर्फ़ जमा किया बल्कि इसके साथ उन्होंने अपनी भ्रष्टाचार का धुर विरोधी तथा राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रबल पक्षधर जैसी छवि का भी इस्तेमाल भी किया.

अपनी ख़ूबसूरत पंक्तियों से सबके दिल को बहलाने में माहिर वी.पी. सिंह का जन्म 25 जून 1931 उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले में एक राजपूत जमींदार परिवार में हुआ था. विश्वनाथ प्रताप सिंह को विद्यार्थी जीवन में ही राजनीति में रूचि हो गई थी. वह वाराणसी के उदय प्रताप कॉलेज के स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष और इलाहाबाद स्टूडेंट यूनियन के उपाध्यक्ष भी रहे. उनके जन्मदिन 25 जून के दिन ही साल 1955 में सीता कुमारी के साथ शादी सम्पन कर दी गयी. यह एक समृद्ध परिवार से थे, पर इन्हें धन दौलत से प्रेम ना था जिसका नतीजा यह था की भू-दान आंदोलन के अंतर्गत उन्होंने अपनी सारी जमीनें दान कर दीं जिसके परिणामस्वरूप परिवार वालों की नाराजगी भी झेलनी पड़ी. यह मामला इतना बिगड़ा की अदालत तक जा पहुंचा.

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वी.पी. सिंह प्रधानमंत्री कैसे बने? V.P. Singh Story

विश्वनाथ प्रताप सिंह को अपने विद्यार्थी जीवन में ही राजनीति से दिलचस्पी हो गई थी. वह समृद्ध परिवार से थे, इस कारण युवाकाल की राजनीति में उन्हें सफलता प्राप्त हुई. सन 1961 में वह उत्तर प्रदेश के विधानसभा में पहुंचे. कुछ समय के लिए उन्होंने उत्तर-प्रदेश के मुख्यमंत्री पद का कार्यभार भी संभाला लेकिन जल्दी ही वह केंद्रीय वाणिज्य मंत्री बन गए. इसके अलावा वह राज्यसभा के सदस्य और देश के वित्तमंत्री भी रहे. इसी बीच उनका टकराव राजीव गांधी से हो गया. बोफोर्स तोप घोटाले की वजह से भारतीय समाज में कांग्रेस की छवि बेहद खराब हो गई.

Know your prime ministers

उन्होंने कांग्रेस के (खासतौर पर राजीव गांधी के) खिलाफ मोर्चा खोल दिया. उन्होंने नौकरशाही और कांग्रेस की सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार की बातें जनता में फैला दी. कुछ वर्ष बाद वी.पी. सिंह उर्फ विश्वनाथ प्रताप सिंह ने कांग्रेस विरोधी नेताओं को जोड़कर एक राष्ट्रीय मोर्चें का गठन किया. वर्ष 1989 के चुनाव में कांग्रेस को भारी क्षति का सामना करना पड़ा और वी.पी सिंह के राष्ट्रीय मोर्चें को बहुमत मिला. जनता पार्टी और वामदलों की सहायता से उन्होंने प्रधानमंत्री का पद हासिल किया. उनका सबसे प्रमुख और साथ ही सबसे विवादास्पद कदम मंडल कमीशन को लागू करने की घोषणा करना था.

भ्रष्टाचार के मुद्दे पर विरोध कब और कैसे करते थे प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह ?

प्रधानमंत्री की ताजपोशी होने के बाद भी वह कांग्रेस के विरुद्ध प्रचार करते रहे. तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के खिलाफ अपने अभियान को कांग्रेस विरोधी दक्षिण व वामपंक्षी दलों की असंभव एकता तक ले जाकर वे प्रधानमंत्री बने. तो देशवासियों के नाम पहले संदेश में कहा था-“आज मैं जन्नत लाने का वादा तो नहीं कर सकता, लेकिन आश्वस्त करता हूं कि हमारे पास एक भी रोटी होगी तो उसमें सारे देशवासियों का न्यायोचित हक सुनिश्चित किया जायेगा और विकास के लाभों का न्यायोचित वितरण होगा.”
इनके पूरे कार्यकाल इनका सबसे विवादास्पद कदम मंडल कमीशन को लागू करने की घोषणा करना था.

बहरहाल, अनेक लोगों को आज भी याद है बोफोर्स तोपों के बहुचर्चित सौदे में दलाली यानी भ्रष्टाचार के मामले को लेकर विश्वनाथ प्रताप सिंह ने, अपने ‘राजा नहीं, फकीर’ वाले दिनों में कैसे नैतिकता के एक से बढ़कर एक ऊंचे और नये मापदंड गढ़े थे. फिर भी उनके निकट संतोष की बात यह थी कि यह विवादास्पदता कभी भी उनके कद को तराशकर छोटा नहीं कर पाई. तब भी नहीं, जब उन्होंने कहा था-
“तुम मुझे क्या खरीदोगे,मैं बिल्कुल मुफ्त हूं” और तब भी नहीं जब उन्होंने ऐलान किया था-

मुफलिस से
अब चोर बन रहा हूं मैं,पर
इस भरे बाजार से, चुराऊं क्या
यहां तो वही चीजें सजी हैं
जिन्हें लुटाकर
मैं मुफलिस हुआ हूं.

V P Singh Story: प्रधानमंत्री रहने के दौरान उन्होंने बाबा साहेब को भारत रत्न देने से लेकर उनकी जयंती पर छुट्टी देने और ऑपरेशन ब्लू स्टार के लिए स्वर्ण मंदिर जाकर माफी मांगने जैसे कदम उठाए. इस दौरान वे रिलायंस कंपनी के साथ सीधे टकराव में आए और धीरूभाई अंबानी को लार्सन एंड टुब्रो पर नियंत्रण जमाने से रोक दिया. राममंदिर आंदोलन के मुद्दे पर उन्होंने बीजेपी के सामने झुकने से मना कर दिया और इसी वजह से उनकी सरकार गिर गई.

क्या हैं बोफोर्स घोटाला ? क्या था वी.पी. सिंह का योगदान ? (Bofors scandal,)

साल 1987 में स्वीडन की रेडियो ने खुलासा करते हुए बताया था कि स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स ने भारतीय सेना को तोप की सप्लाई करने का सौदा हासिल करने के लिये 80 लाख डालर की दलाली चुकायी थी। बता दें कि उस समय राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी और उस दौरान 1.3 अरब डालर में कुल चार सौ बोफोर्स तोपों की खरीद का सौदा हुआ था. इसी मुद्दे को लेकर 1989 में राजीव गांधी की सरकार चली गयी थी और विश्वनाथ प्रताप सिंह राजनीति के नए नायक के तौर पर उभर कर सामने आए.

मंडल कमीशन – वी.पी. सिंह की एक एहम भूमिका (Role of V.P. Singh in Mandal Commission)

मंडल आयोग सन् 1979 में तत्कालीन जनता पार्टी की सरकार द्वारा स्थापित किया गया था. इस आयोग का कार्य क्षेत्र सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़ों की पहचान कराना था. 1989 के चुनाव में जनता दल ने अपने घोषणा पत्र में लिखा था कि अगर वो सत्ता में आती है तो मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू किया जाएगा. 1990 में वीपी सिंह की सरकार बनी और तत्कालीन प्रधानमंत्री बनते हुए वी.पी. सिंह ने अपने चुनावी वादे को पूरा किया. 7 अगस्त 1990 को वीपी सिंह की सरकार ने मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने का ऐलान कर दिया. इन सिफारिशों में पिछड़े वर्ग के लिए 27 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की गई थी. सामाजिक बदलाव की दिशा में ये क्रांतिकारी कदम साबित हुआ. लेकिन उनके इसी कदम की वजह से पूरा सवर्ण वर्ग उनसे नाराज हो गया और उन्हें देश का कलंक कहकर संबोधित किया गया.

आरक्षण लागू करने से पहले ही वीपी सिंह की सरकार गिर गई. लेकिन जब 1991 में कांग्रेस की सरकार जीतकर आई और उसे मंडल कमीशन की सिफारिशों के आधार पर आरक्षण लागू करना पड़ा. मंडल कमीशन की रिपोर्ट पर पिछड़ों को मिले आरक्षण ने राजनीति का पूरा रूख बदल दिया.
लेकिन, इस वजह से वी.पी. सिंह का महत्व कम नहीं हो जाता. जाने-अनजाने में वी.पी. सिंह ने भारत की राजनीति का चेहरा बदल दिया. मंडल कमीशन के जवाब मे बीजेपी ने राम रथयात्रा निकाल दी. इसके बाद भारतीय राजनीति पहले जैसी नहीं रही.

वी.पी. सिंह की मृत्यु (V.P. Singh Death)

भारतीय राजनीतिक इतिहास में नए मुहावरें गढ़ने वाला शख़्स 27 नवंबर, 2008 को 77 वर्ष की आयु में देश की मिट्टी में विलीन हो गया. वीपी सिंह कहा करते थे कि “सामाजिक परिवर्तन की जो मशाल उन्होंने जलाई है और उसके उजाले में जो आंधी उठी है, उसका तार्किक परिणति तक पहुंचना अभी शेष है.”

– Radha Agrawal

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