Know Our Army Heroes: भारतीय सेना की शौर्य गाथाएं इतनी ज्यादा हैं कि उनके लिए शब्द कम पड़ जाते हैं। उन्होंने जहां एक और अपने पराक्रम से कई बार देश की सरक्षा की है तो वहीं दूसरी और संकट में फंसे लोगों को बचाया भी है। भारतीय सेनाओं ने हर मुश्किल से मुश्किल समय में देश के लिए त्याग और बलिदान देते हुए अनेक युद्धों में हमारी रक्षा की है।
स्वतंत्रता के बाद सेना का भारत पूरी तरह से आज़ाद होगा। इसके तुरंत बाद ही स्वतंत्र भारत की सीमाओं की रक्षा करने की जिम्मेदारी को ना जाने कितने वीर सपूतों ने अपने कंधों पर लिया। देश के वीर योद्धाओं ने प्रत्येक जिम्मेदारियों का निर्वाह जान की बाजी लगाकर किया है।
Know Our Army Heroes: भारतीय सेना के अनगिनत जवान देश की सेवा करते करते अपने प्राणों का बलिदान तक दे देते हैं आज हम आर्टिकल डेली के माध्यम से इस लेख में आज़ाद भारत के उन्हीं वीर सैनिकों की बात करेंगे जो भारत माता की रक्षा करते हुए इसकी गोद में हमेशा के लिए सो गए। हमारे वीर योद्धाओं को समर्पित लेखकों के इस सीरीज में हम देश के ऐसे ही वीर सपूतों के बलिदान की गौरव गाथा आप तक पहुंचाने जा रहे हैं। जिससे आप भी हमारे असली योद्धाओं के बारे में जानकारी प्राप्त कर सके।
मेजर सोमनाथ शर्मा (Know Our Army Heroes; Major Somnath Sharma)
मेजर सोमनाथ शर्मा का जन्म 31 जनवरी, 1923 को जम्मू में हुआ था। उनके पिता मेजर अमरनाथ शर्मा भी सेना में डॉक्टर थे और आर्मी मेडिकल सर्विस के डायरेक्टर जनरल के पद से सेवामुक्त हो चुके थे।

मेजर सोमनाथ ने अपने सैनिक जीवन 22 फरवरी, 1942 से शुरू किया जब इन्होंने चौथी कुमाऊं रेजिमेंट में बतौर ऑफिसर प्रवेश लिया।
3 नवंबर, 1947 को मेजर सोमनाथ शर्मा की टुकड़ी को कश्मीर घाटी के बदगाम मोर्चे पर जाने का हुकुम दिया गया। सुबह होते ही मेजर सोमनाथ अपनी टुकड़ी के साथ युद्ध के लिए तैनात हो गए और दुश्मनों की 500 लोगों की टुकड़ी ने उन्हें घेर लिया भारी गोलाबारी के अंतर्गत वे भारत माता के आंचल में हमेशा के लिए सो गए।
उनके शव की पहचान उनकी जेब में रखी गीता की पुस्तक से हुई। मृत्यु उपरांत उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
नायक यदुनाथ सिंह

नायक यदुनाथ सिंह का जन्म 21 नवंबर 1916 को जम्मू में हुआ था। उनके पिता का नाम बीरबल सिंह था। वह उनकी आठवीं संतान थे। बचपन से ही देशभक्ति का जोश उनके मन में था। साथ ही खेलकूद का काफी शौक भी रखते थे। वह हमेशा ही सबकी मदद के लिए हाजिर रहा करते थे। हनुमान के भक्त होने के कारण सभी उन्हें हनुमान भक्त कहकर पुकारा करते थे। युवा अवस्था में वह भारतीय थल सेना से जुड़े। 31 वर्ष की आयु में 6 फरवरी 1948 को राजपूत रेजीमेंट में रहते हुए भारत पाकिस्तान युद्ध में नायक यदुनाथ सिंह ने इस देश को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।
वीरगति के पश्चात भी यह देश उन्हें याद करता आ रहा है, मृत्यु उपरांत उन्हें परमवीर चक्र से भी सम्मानित किया गया।
कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह (Know Our Army Heroes)

मेजर पीरू सिंह का जन्म 20 मई 1918 को राजस्थान के बेरी गांव में हुआ था। बचपन से खेती-बाड़ी में काम करने से वह काफी तंदुरुस्त थे। पीरू सिंह बचपन से ही सेना में शामिल होना चाहते थे लेकिन उनकी 18 वर्ष की आयु पूर्ण नहीं होने के कारण वो परीक्षा में से 2 बार निकाल दिए गए।
Know Our Army Heroes: सन 1936 में उन्होंने ब्रिटिश अधीन भारत में ही भारतीय सेना को ज्वाइन किया। 18 जुलाई 1948 को 6 राजपूताना राइफल्स के सी एच एम पीरु सिंह को जम्मू कश्मीर के तिथवाल में शत्रुओं द्वारा अधिकृत एक पहाड़ी पर आक्रमण कर उसे आज़ाद करने का काम सौंपा गया। हमले के दौरान उन पर एम एम जी से भारी गोलीबारी की गई और हथगोले फेंके गए। उनकी टुकड़ी के आधे से अधिक सैनिक मारे गए या घायल हो गए। अचानक उन्हें पता चला कि उनकी टुकड़ी में इकलौते वे ही जीवित बचे हैं। जब दुश्मनों ने उन पर एक और हथगोला फेंका, वे लहुलुहान चेहरे के साथ रेंगते हुए आगे बढ़े और अंतिम सांस लेने से पहले उन्होंने दुश्मन के ठिकाने को नष्ट कर दिया। उत्कृष्ट वीरता तथा अदम्य शौर्य का प्रदर्शन करने और सर्वोच्च बलिदान देने के फल स्वरूप कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह को मरणोपरांत परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
ब्रिगेडियर उस्मान

मोहम्मद उस्मान अविभाजित भारत में मऊ जिले के बीबीपुर गांव में 15 जुलाई 1912 को पैदा हुए। उस्मान ने अपनी शिक्षा के लिए विदेश का दौरा किया। 1935 में मोहम्मद उस्मान भारत वापस आए तो उनकी नियुक्ति बलूच रेजिमेंट की पांचवी बटालियन में हुई। 30 अप्रैल 1936 को उन्हें लेफ्टिनेंट की युद्ध पर प्रमोशन मिला दिया गया। वो 1941 में कैप्टन बने 1944 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने ब्रिटिश फौज की ओर से बर्मा में सेवाएं दी। उनकी नियुक्ति 5 /10 बलूच रेजिमेंट में थी।
जहां उन्होंने देश की आजादी तक सेवाएं दी और बंटवारे के दौरान पाकिस्तान आर्मी के चीफ के रूप में ज्वाइन करने का मौका मिला। लेकिन उस्मान ने उस मौके को स्वीकार नहीं किया उन्होंने अपने देश की मिट्टी की सेवा करने का मन बना लिया था। फरवरी 1948 में ब्रिगेडियर उस्मान की तैनाती नौशेरा में थी. पाकिस्तान लगातार कबायली घुसपैठियों को जम्मू-कश्मीर भेज रहा था। देश को आजाद हुए अभी 5 महीने ही हुए थे और झांगर की लड़ाई में भारतीय सेना सैलाब बनकर पाकिस्तान पर टूट पड़ी। भयंकर लड़ाई हुई। ब्रिगेडियर उस्मान खुद जंग का नेतृत्व कर रहे थे।
3 जुलाई 1948 को उस्मान के पास तोप का एक गोला गिरा और वह अपने 36 वें जन्मदिन से 12 दिन पहले 3 जुलाई 1948 वीरगति को प्राप्त हुए। तदोपरान्त उन्हें दुश्मन के सामने बहादुरी के लिए भारत के दूसरे सबसे बड़े सैन्य पदक महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।
राम राघोबा राणे

राम राघोबा राणे का जन्म 26 जून 1918 को कर्नाटक में हुआ। उनके पिता राघव वापी पुलिस कॉन्स्टेबल थे। राम राघोबा के मन में देशभक्ति का शुमार पहले से ही था। मेजर राम राघोबा सन 1930 में असहयोग आंदोलन से भी प्रभावित हुए और भारतीय स्वतंत्रता के लिए उत्तेजित हुए। 1947 में हमने बंटवारे का दर्द भी झेला। यह कम होता है इससे पहले 1948 में कबालियों ने जम्मू कश्मीर पर हमला कर दिया भारतीय सेना ने इसका मुंहतोड़ जवाब दिया। मगर दुश्मन कहा मानने वाला था। जैसे-तैसे भारतीय सेना 8 अप्रैल 1948 को राजौरी में मौजूद दुश्मनों को और पीछे हटाने में कामयाब रही। मगर अभी भी नौशहरा उनकी पहुंच से करीब 11 किलो मीटर दूर था। राणे कुछ ही दूर पहुंचे थे कि दुश्मन को उनके आने की ख़बर लग गई. उसने राणे के दल पर भारी बमबारी करना शुरू कर दी। इसमें कई भारतीय जवान शहीद हो गए।
मगर वो राणे को नहीं रोक पाए। अंतत: राणे नदी का पुल बनाने में कामयाब रहे।
लगातार 72 घंटे तक वह बिना सोए-खाए दुश्मन का मुकाबला करते रहे। इस तरह राणे भारतीय सेना को एक सुरक्षित रास्ता देने में सफल रहे, जिसके कारण भारतीय सेना दुश्मन को खदेड़ने में कामयाब रही। बाद में राणे को वीरता के लिए सेना के बड़े सम्मान परम वीर चक्र से नवाज़ा गया।
राजेन्द्र सिंह

राजेन्द्र सिंह का जन्म 14 जून 1899 में गुलाम भारत में हुआ। बचपन से ही मन में राष्ट्रीय सेवा का भाव था। देश की मिट्टी से इतना प्यार था कि युवावस्था में भारतीय सेना को ज्वाइन किया। 25 सितंबर 1947 को मेजर जनरल रैंक के पदोन्नत हुए। वह 23 अक्टूबर 1947 की सुबह तड़के उरी पहुंचे। ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह ने उरी नाले पर एक पलटन को तैनात किया और उसके बाद खुद गढ़ी के लिए रवाना हो गए। गढ़ी में दुश्मन के साथ खूब झड़प हुई। हालांकि दुश्मन को भारी नुकसान पहुंचा, लेकिन इसके बाद भी वह हावी होने लगा। स्थिति की विकटता को समझते हुए ब्रिगेडियर ने पीछे हटने और कबायलियों को उरी के पास रोकने का फैसला किया।
दुश्मन की इस चाल को भांपते हुए ब्रिगेडियर सिंह के आदेश पर कैप्टन ज्वालासिंह ने सभी पुलों को उड़ा दिया। यह काम शाम साढ़े चार बजे तक समाप्त हो चुका था। लेकिन कई कबायली पहले ही इस तरफ आ चुके थे। इसके बाद ब्रिगेडियर ने रामपुर में दुश्मन को रोकने का फैसला किया और रात को ही वहां पहुंचकर उन्होंने अपने लिए खंदकें खोदीं।
27 अक्टूबर 1947 की दोपहर को सेरी पुल के पास ही उन्होंने दुश्मन से लड़ते हुए वीरगति पाई।
ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह को मरणोपरांत देश के पहले महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। फील्ड मार्शल केएम करिअप्पा ने 30 दिसंबर 1949 को जम्मू संभाग में बगूना-सांबा के इस सपूत की वीर पत्नी रामदेई को सम्मानित किया था।
लांस नायक करम सिंह

Know Our Army Heroes: लांस नायक करम सिंह का जन्म 15 सितंबर 1915 को पंजाब के बरनाला में हुआ। भारत के प्रति उनकी निपुण श्रद्धा थी। सन 1941 में उन्होंने भारतीय सेना को ज्वाइन किया
13 अक्टूबर, 1948 को पूरी ताकत से हमला कर दिया। पाकिस्तान किसी भी कीमत पर टिथवाल के रीछमार गली और नस्तचूर दर्रे पर कब्जा चाहता था।
जोकि लांस नायक करम सिंह के रहते संभव नहीं था। सिख रेजिमेंट की एक टुकड़ी का नेतृत्व करते हुए करम सिंह ने दुश्मन के हर वार का मुंहतोड़ जवाब दिया। एक के बाद एक 7 कोशिशें करने के बाद दुश्मन आग बबूला हो गया। वह समझ चुका था कि जब तक करम सिंह खड़े हैं, वह इस पोस्ट को जीत नहीं सकते।
लिहाज़ा उन्होंने गोलीबारी तेज़ कर दी। इस दौरान करम सिहं बुरी तरह घायल हो गए। मगर उन्होंने घुटने नहीं टेके। ख़ुद को समेटते हुए उन्होंने अपने साथियों का मनोबल बढ़ाया। साथ ही दुश्मन पर लगातार ग्रेनेड फेंकते रहे। लग ही नहीं रहा था कि कोई अकेला जवान लड़ रहा है। वह एक कंपनी की तरह अकेले लड़े जा रहे थे। इस तरह पाकिस्तान के आठवें हमले को भी करम सिंह ने बेकार कर दिया। अपनी इस वीरता के लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
ये सभी वीर सपूत जिन्होंने अपना बलिदान इस देश की और हमारी रक्षा के दिया है वो भी किसे के बेटे थे, भाई थे, पति थे या फिर किसी बच्चे के बाप थे। हिंदूस्तान की आने वाली हर एक पीढ़ी उनके त्याग और बलिदान के लिए उनकी आजीवन ऋणि रहेगी।
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Jai Hind🖤🖤🖤🔥🇮🇳