भारत में राजपूतों का उदय सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु और प्रतिहार साम्राज्य के विघटन का परिणाम था. सातवीं शताब्दी से हमें राजपूतों का उदय देखने को मिलता है. सातवीं शताब्दी से लेकर अगले 500 वर्षों तक भारतीय राजनीतिक परिदृश्य पर राजपूतों का प्रभुत्व रहा है. 12 वीं शताब्दी आते-आते उत्तर भारत में उनके 36 कुल अत्यंत प्रसिद्ध रहे हैं. पुराणों के पवित्र ग्रंथों जैसे महाभारत और रामायण के अनुसार राजपूतों की तीन वंशावली बताई गई है जिन्हें सूर्यवंश, चंद्रवंश या सोमवंश और अग्नि वंश के नाम से जाना जाता है.
भारत के प्रमुख राजवंश के संस्थापक और उनकी राजधानी
1. दिल्ली अजमेर के चौहान चाहमान
संस्थापक- वासुदेव
राजधानी- दिल्ली
2. कन्नौज के प्रतिहार/परिहार
संस्थापक- नागभट्ट
राजधानी- अवंती, कन्नौज
3. मालवा के पवार/ परमार
संस्थापक –सीअक II “श्री हर्ष”
राजधानी- उज्जैन, धार
4. काठियावाड़ के चालुक्य सोलंकी
संस्थापक- मूलराज
राजधानी- अन्हिलवाड़ा
5. माल्खंड के राष्ट्रकूट
संस्थापक – दंती दुर्ग (दंती वर्मन)
राजधानी- मान्यखेत/ मालखंड
6. जाजलभुक्ती के चंदेल
संस्थापक- नन्नुक चंदेल
राजधानी-खुजराहो, महोबा, कलिंजर
7.चेदी के कल्चुरी/ हैहया
संस्थापक- कोक्कल
राजधानी- त्रिपुरी
8.कन्नौज के गहड़वाल/ राठौर
संस्थापक-चन्द्रदेव
राजधानी-कन्नौज
9.हरियाणा और दिल्ली केे तोमर
संस्थापक- अनंगपाल सिंह तोमर
राजधानी- ढिल्लीका
10.मेवाड़ केे गुहीलोटा/ सिसोदिया
संस्थापक-बप्पा रावल, हम्मीर
राजधानी- चित्तौड़
राजपूत शब्द की उत्पत्ति
‘राजपूत’ संस्कृत शब्द राजपुत्र से बना है जिसका अर्थ “राजा का पुत्र” है. राजपूतों को उनकी वीरता बहादुरी वफादारी और राजसी गौरव के लिए पहचाना जाता है. राजपूतों की उत्पत्ति पश्चिमी,पूर्वी,उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ हिस्सों से हुई थी.
छठी शताब्दी में भारत जाति व्यवस्था में विभाजित हुआ जिसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र शामिल थे. ब्राह्मणों को उच्च वर्ग के हिंदुओं के रूप में जाना चाहता था जो सिर्फ पवित्र कार्य किया करते थे. क्षत्रियों को युद्ध में लड़ने और शासन कार्य की देखभाल के लिए जाना जाता था. वैश्य जमींदार, कृषिवाद, व्यापारी साहूकार हुआ करते थे और शूद्रों को उपरोक्त तीनों जातियों की सेवा करनी होती थी.
राजपूत क्षत्रियों की श्रेणी में आते हैं. उत्तरी भारत में अपने शासनकाल के दौरान राजपूतों ने मंदिर महल और किले आदि का निर्माण करवाया. यह चित्रों को बनवाने का भी शौक रखते थे.
राजपूत महिलाएं
राजपूत महिलाएं घरेलू काम किया करती थी लेकिन वह युद्ध के लिए भी कुशल थी. राजपूतानियाँ पुरुषों की की तरह ही बहादुर और सेना में पुरुषों की संख्या कम होने पर मैदान में उतरने से नहीं कतराती थी. हालांकि, यदि राजा और उनके सारे पुरुष सिपाही युद्ध में मारे जाते थे तो राजपूत महिलाएं अन्य शासक की कैदी बनने के बजाय आत्महत्या कर लिया करती थी. इस अनुष्ठान को ‘जौहर’ के नाम से जाना जाता था. मेवाड़ की महारानी पद्मनी का जौहर प्रसंग इतिहास में बहुत प्रसिद्ध घटना है.
मुगलों के साथ से कोई शर्मिंदगी नहीं थी राजपूतों को
राजपूत अपने साहित्य में वह बड़े गर्व के साथ मुगलों से अपने संबंध को बताते हैं. उन्हें कोई शर्म नहीं है कि राजपूतों ने मुगलों का साथ दिया. राजपूतों के साहित्य में तो बताया गया है कि देखिए वह कितने क़रीब हैं और बादशाहों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते हैं. मोहता नैनसी महाराजा जसवंत सिंह के सहायक थे. मोहता नैनसी की दो किताबें हैं. एक मारवाड़ विगत दूसरी नैनसी दी ख्यात. इन किताबों में कहीं भी शर्म का अहसास नहीं है कि हमने ये क्या किया और मुग़लों का साथ क्यों दिया? इन किताबों में कोई खेद या अफ़सोस नहीं दिखाया गया है.
राजपूत समाज के पतन का कारण
राजपूतों का पतन किसी कारण विशेष का परिणाम नहीं था, विभिन्न कारणों ने इस दिशा में अपना योगदान दिया
- उस समय देश में राजनीतिक एकता कम थी. राजपूतों के छोटे-छोटे राज्य होने के कारण यह परस्पर संघर्ष किया करते थे. हर शासक अपने पड़ोसी पर आक्रमण कर उन्हें परास्त करने की चेष्टा करता था.
- प्रत्येक राजपूत कुल अपने वंश को अधिक महत्व देता था.
- राजपूतों की पराजय में उनकी सेना तथा सैनिक संगठन भी उत्तरदायी है. राजपूतों की सेना में सिपाहियों और हाथियों की संख्या ज्यादा और अच्छे घोड़ों की संख्या कम थी. वही मुसलमान सैनिक लड़ाई की नई-नई पद्धतियों से परिचित थे तथा उनके घोड़े और घुड़सवार दोनों ही राजपूतों से ज्यादा थे.
- मुस्लिम सेना राजपूतों की सेना से अधिक संगठित एवं अनुशासित थी.
- राजपूतों का सामाजिक संगठन दोषपूर्ण होने से भी उन्हें बहुत बड़ी हानि उठानी पड़ी. तत्कालीन समाज में ऊंच-नीच, छुआछूत की भावना अत्यंत प्रबल थी. वर्ण व्यवस्था के अनुसार देश की रक्षा का भार केवल क्षत्रिय जाति पर था.
- समाज का बहुत बड़ा भाग देश की रक्षा की ओर से उदासीन था. परिणाम स्वरुप राष्ट्रीयता की भावना का लोप हो गया. मुसलमानों को संपूर्ण भारतीयों की बजाय कुछ राजवंशों से युद्ध करना पड़ा जिससे उनकी जीत निश्चित थी.
- राजपूतों में अनेक दुर्गुण थे जैसे मदिरापान, द्यूतक्रीड़ा, बहुविवाह आदि जिससे उनके जीवन का नैतिक स्तर गिर रहा था.
Srishti