आठवीं शताब्दी ईसवीं के दौरान भारत के तीन प्रमुख साम्राज्य पाल, प्रतिहारों, और राष्ट्रकूटों के बीच कन्नौज पर नियंत्रण को लेकर संघर्ष हुआ करता था. जिससे भारत में कन्नौज के इतिहास में त्रिपक्षीय संघर्ष कहा जाता है.
भारत के पूर्वी हिस्सों पर पालों का शासन था जबकि प्रतिहार पश्चिमी भारत को नियंत्रित करते थे. राष्ट्रकूटों ने भारत के दक्कन क्षेत्र पर शासन किया. इन तीन राजवंशों का कन्नौज पर नियंत्रण के संघर्ष को भारतीय इतिहास में त्रिपक्षीय संघर्ष के रूप में जाना जाता है.
क्या था त्रिपक्षीय संघर्ष का मुख्य कारण?
राजा हर्षवर्धन के बाद कन्नौज विभिन्न शक्तियों के आकर्षण का केंद्र बना. वास्तव में हर्षवर्धन और यशोवर्मन ने इसे साम्राज्यवाद का प्रतीक बना दिया था. गुप्त युग तक इसे मगध की तरह स्थान प्राप्त था. उत्तर भारत का चक्रवर्ती सम्राट बनने के लिए कन्नौज पर अधिकार जमाना आवश्यक समझा गया. कन्नौज का राजनीतिक महत्व के साथ-साथ आर्थिक महत्व भी काफी हद तक बढ़ गया और इसके आकर्षण का एक महत्वपूर्ण कारण साबित हुआ.
- इस पर नियंत्रण कर गंगा घाटी और कृषि संसाधनों पर नियंत्रण स्थापित किया जा सकता था.
- गंगा और यमुना के बीच स्थित होने के कारण यह सबसे उपजाऊ क्षेत्र था.
- व्यापार मार्ग अलग-अलग दिशाओं में जाने के कारण यह शहर व्यापार और वाणिज्य की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण था.
- एक मार्ग कन्नौज से प्रयाग तक जाता था और फिर तट से दक्षिण में कच्छी तक जाता था.
- दूसरा रास्ता वाराणसी और गंगा के मुहाने तक जाता था.
- तीसरा मार्ग पूर्व में काम रूप और उत्तर से नेपाल और तिब्बत के लिए था.
- चौथा मार्ग कन्नौज से दक्षिण की ओर जाता था और वनवासी से मिलता था.
- पांचवा मार्ग कन्नौज से बजाज और फिर गुजरात की राजधानी तक था.
- अतीत में जिस प्रकार उत्तरा पत्र के व्यापार मार्ग पर मगध का नियंत्रण था, कन्नौज ने भी उसी प्रकार की स्थिति प्राप्त कर ली थी.
इसी प्रकार कन्नौज पर राजनीतिक और आर्थिक दोनों दृष्टि से आधिपत्य स्थापित करना लाभदायक था. इसलिए इस पर शासन करने के लिए आठवीं शताब्दी में तीन बड़ी शक्तियों पाल, गुर्जर-प्रतिहार, राष्ट्रकूटों के बीच त्रिपक्षीय संघर्ष शुरू हुआ. जो की 8वीं-9वीं शताब्दी की उत्तर भारत के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना है.
धर्मपाल पाल राजा और पत्र आज प्रतिहार राजा दोनों कन्नौज के लिए आपस में भिड़ गए. उत्तरार्ध विजयी हुआ लेकिन राष्ट्रकूट के राजा ध्रुव प्रथम द्वारा पराजित हुआ. इसी के साथ जिस क्षण राष्ट्रकूट राजा दक्षिण में अपने राज्य लौटा यह देख भाल राजा धर्मपाल ने मौके का फायदा उठाते हुए कन्नौज पर कब्जा कर लिया. लेकिन कन्नौज पर उसका कब्जा अस्थाई था.
इसी प्रकार त्रिपक्षीय संघर्ष शुरू हुआ और यह संघर्ष दो शताब्दियों तक चला. इतना लंबा संघर्ष करने के परिणाम स्वरूप तीनों राजवंश कमजोर पड़ गए और देश का राजनीतिक विघटन हुआ. जिसके कारण मध्य पूर्व के इस्लामी आक्रमणकारियों को लाभ हुआ.
By- Srishti
Pingback: Rajputs: A Lesson In Indian History – Articles daily