Quantum Consciousness: जानिए क्या है क्वांटम कॉन्शसनेस की थ्योरी और आखिर क्यों नहीं नष्ट होती है क्वांटम चेतना?

Quantum Consciousness: क्वांटम फिजिक्स विज्ञान की सबसे ज्यादा दिलचस्प और रहस्यों से भरी हुई शाखों में से एक है. जिसमें टाइम, रियलिटी, पैरलर यूनिवर्स आदि का कॉन्सेप्ट देखने को मिलता है. ऐसे में अगर हम आप से कहे कि आप जो कुछ भी सोच रहे हैं, आप जो निर्णय लेते हैं, एक्टिविटी करते हैं, वो आप इसलिए कर पाते हैं क्योंकि इसके पीछे क्वांटम फिजिक्स है. जो आपके ब्रेन के साथ-साथ कॉन्शसनेस को भी नियंत्रित करती है, तो आपको हैरानी जरूर होगी, लेकिन एक रिसर्च में ये दावा किया गया है कि आपके दिमाग के अंदर बायोफोटोन होते हैं, जो क्वांटम कॉन्शसनेस की बात को लगभग सही साबित कर सकने के लिए काफी है. दो बड़े वैज्ञानिक Betony Adams और Francesco Petruccione जो क्वांटम बायोफिजिक्स की जगत में काम कर रहे हैं. आज हम आपको Quantum Consciousness की थ्योरी के साथ-साथ ये भी बताने जा रहे हैं कि कैसे क्वांटम आपके दिमाग को काफी हद तक कंट्रोल करता है.

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कैसे काम करता है इंसान का दिमाग?
Quantum Consciousness की थ्योरी को जानने से पहले आपको समझना होगा कि एक इंसानी दिमाग कैसे काम करता है? अगर आप दिमाग को समझने की बात करते हैं, तो आपको सबसे पहले ये समझना होगा कि किसी भी जानवर या इंसान का दिमाग, विज्ञान की जिस शाखा में अध्ययन किया जाता है, उसे न्यूरोलॉजी कहते हैं.

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न्यूरोलॉजी कहती है कि शरीर में जो भी एक्टिविटी होगी वो दिमाग के द्वारा ही नियंत्रित होती है. ऐसे में अगर आपके शरीर के किसी हिस्से में चोट लग जाएं या फिर आपको अपने हाथ को यहां से वहां घुमाकर काम करना है, तो जानकारी कैसे दिमाग तक पहुंचती है? ऐसे में न्यूरोलॉजी में एक कांसेप्ट है न्यूरोनट्रिमिशन का, जो ये कहती है कि आपके शरीर में कई सारे न्यूरॉन होते हैं, जो मैसेंजर और रेसिप्टेर का काम करते हैं. जो शरीर के हर एक हिस्से का सारा संदेश इन्हीं के द्वारा दिमाग तक जाती है, लेकिन क्वांटम बायोफिजिक्स कहती है कि ये जितने भी न्यूरॉन है वो बेसिकली क्वांटम मैकेनिज्म है.

साल 1961 में सिल्विया प्लाथ ने अपनी किताब “The Moon and the Yew Tree” में लिखा था कि The light of the mind is blue, लेकिन जबकि क्वांटम ये कहती है कि ये ब्लू न होकर रेड है, क्योंकि हालिया शोध ये कहती है कि दुनिया में जितने भी दिमाग है, वहां पर इंटेलिजेंस और बायोफोटोन की फ्रीक्वेंसी दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. ऐसे में अगर किसी दिमाग में बायोफोटोन की फ्रीक्वेंसी दूसरे से ज्यादा होगी, तो वो ज्यादा एक्टीवेली चीजों को करेगा. साथ ही जितनी ज्यादा फ्रीक्वेंसी के साथ ये बायोफोटोन रेड स्पेक्ट्रम की तरफ शिफ्ट होते हैं, उतनी तेजी से ही इंटेलिजेंसी बढ़ती जाती है.

क्या है Quantum Consciousness की थ्योरी?
Quantum Consciousness की थ्योरी सबसे पहले साल 1990 में प्रकाश में आई थी. उस समय दो बड़े वैज्ञानिकों ने इस थ्योरी पर जोर दिया था, जिसमें से एक थे Roger Penrose और दूसरे थे Stuart Hameroff. इन दोनों वैज्ञानिकों ने जो थ्योरी दी उसे Orchestrated objective Reduction के नाम से जाना जाता है. जिसे आम भाषा में क्वांटम कॉन्शसनेस या क्वांटम चेतना के सिद्धांत के नाम से जाना जाता है.

Quantum Consciousness की थ्योरी कहती है कि, Consciousness एक प्रोग्राम है जिसे इंसानी दिमाग में क्वांटम कंप्यूटर के लिए प्रोग्राम्ड किया गया है. अर्थात चेतना किसी भी मस्तिष्क में एक क्वांटम कंप्यूटर के लिए बनाया गया एक कार्यक्रम है जो मृत्यु के बाद भी ब्रह्मांड में बनी रह सकती है, जो उन लोगों की धारणाओं को समझाती है जिन्होंने मृत्यु को करीब से अनुभव किया हो.

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ये सिद्धांत ये भी कहता है कि, हमारी आत्मा का सार मस्तिष्क कोशिकाओं के भीतर सूक्ष्मनलिकाएं नामक संरचनाओं के अंदर समाहित है और चेतना का हमारा अनुभव इन सूक्ष्मनलिकाएं में क्वांटम गुरुत्व प्रभावों का परिणाम है.”
इसका सीधा सा मतलब ये है कि हमारी आत्मा का संबंध सिर्फ ब्रेन को जोड़ने वाले न्यूरॉन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि ये इससे आगे की चीज है. साथ ही ये वास्तव में ब्रह्मांड के ताने-बाने से निर्मित हैं – और समय की शुरुआत से ही अस्तित्व में रहे होंगे.ये पूरा कांसेप्ट हिंदुनिज़्म के पुराने विश्वासों से काफी मिलती-जुलती है कि इंसान की चेतना इस ब्रह्मण्ड का ही एक अंश है और अंत में वो इसमें विलीन हो जाता है.

साथ ही हैमरॉफ का मानना ​​​​है कि निकट-मृत्यु के अनुभव में सूक्ष्मनलिकाएं अपनी क्वांटम अवस्था खो देती हैं, लेकिन उनके भीतर की जानकारी नष्ट नहीं होती है. इसके बजाय यह केवल शरीर छोड़ देता है और ब्रह्मांड में वापस आ जाता है.

हैमरॉफ के मुताबिक “मान लीजिए कि दिल धड़कना बंद कर देता है, रक्त बहना बंद हो जाता है, सूक्ष्मनलिकाएं अपनी क्वांटम अवस्था खो देती हैं, लेकिन सूक्ष्मनलिकाएं के भीतर क्वांटम जानकारी नष्ट नहीं होती है, इसे नष्ट नहीं किया जा सकता है, यह बस ब्रह्मांड में बड़े पैमाने पर वितरित और विलुप्त हो जाता है, साथ ही अगर हम रोगी को पुनर्जीवित किया जाता है, तो यह क्वांटम जानकारी सूक्ष्मनलिकाएं में वापस जा सकती है और रोगी कहता है कि ‘मेरे पास मृत्यु का अनुभव था.”

इसके अलावा अगर वे पुनर्जीवित नहीं होते हैं, और रोगी की मृत्यु हो जाती है, तो संभव है कि यह क्वांटम जानकारी शरीर के बाहर मौजूद हो, शायद अनिश्चित काल तक, एक आत्मा के रूप में,”

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