रूस और यूक्रेन विवाद Russia vs Ukraine
Russia vs Ukraine: यूक्रेन और रूस के बीच चल रहा विवाद रुकने का नाम तक नहीं ले रहा है. यूक्रेन पर अपना अधिकार बनाये रखने के लिए रूस युद्ध के स्तर तक भी जा सकता है. इसी बीच युद्ध की बढ़ती आशंकाओं के बीच यूक्रेन ने एक ठोस फैसला लिया है. उसने देश में 30 दिनों का आपातकाल घोषित कर दिया है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स और एएफ़पी के अनुसार इस आपातकाल की अवधि तो अभी 30 दिनों के लिए ही है, मगर ये आवश्यकता पड़ने पर बढ़ाया भी जा सकता है. साथ ही यूक्रेन ने रूस में रह रहे अपने नागरिकों को वापस लौट आने की भी हिदायात देते हुए रूस यात्रा पर भी रोक लगा दी है. इस आपातकाल को यूक्रेन की सुरक्षा परिषद से मंजूरी दी जा चुकी है, जिसके बाद से आपातकाल लगाया जा रहा है.
रूस और यूक्रेन विवाद क्या है? Russia vs Ukraine Controversy
पिछले साल दिसंबर के शुरूआती हफ्ते से ही रूस और यूक्रेन के बीच विवाद शुरू हुआ था. जो आज युद्ध के कगार तक पहुंच गया है. जिसके चलते ऐसे अटकलें लगाए जा रहे हैं कि कभी भी रूस और यूक्रेन के बीच एक भीषण यद्ध हो सकता है. हालांकि ये ध्यान देने योग्य बात है कि रूस और यूक्रेन ये बीच ये तनाव कोई नया नहीं है, बल्कि ये 30 साल पुराना विवाद है. जो पिछले 30 सालों से रूस और यूक्रेन की सीमा पर काफी ज्यादा तनाव को पैदा किए हुए हैं.
Russia vs Ukraine: ये सब कुछ, साल 1991 में सोवियत संघ के सम्पूर्ण विघटन से शुरू हुआ था. जब सोवियत संघ से पोलैंड व बाल्टिक के साथ-साथ यूक्रेन ने भी आजादी की मांग करके रूस से अलग होने की बात की थी. जिसके बाद एक जनमत संग्रह कराया गया और उसमें 90 प्रतिशत यूक्रेनियन ने सोवियत संघ से अलग होने के पक्ष में वोट दिया. इसके बाद रूस के तत्कालीन राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने यूक्रेन को एक नए देश के तौर पर मान्यता दे दी. साथ ही उस समय क्रीमिया को भी रूस ने यूक्रेन का हिस्सा बताया था. साल 1954 में सोवियत संघ के यूनियन के सर्वोच्च नेता निकिता ख्रुश्चेव यूक्रेन को क्रीमिया तोहफे के तौर पर दे दिया था.

ऑरेंज रिवॉल्यूशन क्या है? Orange Revolution
रूस और यूक्रेन के बीच तनाव में ऑरेंज रिवॉल्यूशन का भी काफी अहम रोल है. साल 2004 में यूक्रेन के राष्ट्रपति इलेक्शन में रूसी समर्थक माने जाने वाले विक्टर यानुकोविच की जीत हुई. जिसके बाद यूक्रेन में विद्रोह हो गया और यूक्रेन के निवासियों ने दोबारा गिनती की मांग की. तब उस समय रूस ने इसे पश्चिमी देशों की साजिश बताई थी. इसी विद्रोह को ही ऑरेंज रिवॉल्यूशन के नाम से जाना जाता है.
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रूस और यूक्रेन के बीच ताजा विवाद में नाटो का किया भूमिका है? (Role Of NATO in Russia vs Ukraine)
रूस और यूक्रेन के बीच इस ताज चल रहे विवाद की सबसे अहम जड़ नोटा को माना जा रहा है, क्योंकि यूक्रेन सालों से चाहता है कि वो नाटो में शामिल हो जाए. मगर रूस यूक्रेन के इस फैसले से खुश नहीं है और वो किसी भी कीमत पर यूक्रेन को नाटो में शामिल नहीं होने देना चाहता है. साल 2008 में भी यूक्रेन के विपक्षी नेता विक्टर युशेचेनको ने यूक्रेन को नाटो में शामिल होने की पेशकश की थी. जिसको अमेरिका ने समर्थन भी दिया था. मगर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इसका विरोध किया था. नाटो ने जार्जिया और यूक्रेन को शामिल करने की बात की थी. लेकिन रूस ने इसी बीच जार्जिया पर हमला करके उसके दो हिस्सों को 4 दिन के अंदर ही अपने कब्जे में ले लिया.
साल 2010 में एक बार फिर विक्टर यानुकोविच राष्ट्रपति बने, तो उन्होंने नोटा में शामिल होने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया. साल 2013 में उन्होंने यूरोपियन यूनियन के साथ समझौता करने से इंकार कर दिया. जिसके बाद देश में विरोध प्रदर्शन के लिए लोग सड़कों पर उतर आए. मगर फरवरी 2014 में विरोध प्रदर्शन के दौरान ही कई प्रदर्शन कारी मारे गए. जिसके बाद से विरोध और ज्यादा तेज हो गया और 22 फरवरी को विक्टर यानुकोविच देश छोड़कर भाग गए.
क्रीमिया पर हमला और रूस का अधिकार Crimea Attack
यूक्रेन में यूरोपियन यूनियन के समर्थकों की सरकार बनने के बाद क्रीमिया पर कुछ अलगाव वादियों ने आर्मी ड्रेस में हमला कर दिया और उन्होंने क्रीमिया पर कब्जा कर लिया. इसके बाद मार्च 2014 में क्रीमिया में एक जनमत संग्रह कराया गया और वहां पर 97 प्रतिशत लोगों ने रूस के साथ जाने के हक में वोट किया. जिसके बाद 18 मार्च 2014 को क्रीमिया ऑफिशियली रूस का हिस्सा बन गया. रातों-रात वहां से यूक्रेन के 25 हजार से ज्यादा सैनिकों और उसके परिवारों को निकाल दिया गया.
नाटो क्या है और रूस क्यों नहीं चाहता यूक्रेन इससे मिले?
NATO यानी नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन 27 यूरोपियन देशों और 2 नार्थ अमेरिकन देशों और 1 यूरोएशियन देशों का एक समूह है. जो सोवियत संघ के विस्तार को पश्चिमी देशों तक न पहुंचने के उद्देश्य से बनाया गया था. लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद से नाटो अब खुद पूर्व देशों की तरह बढ़ रहा है और उन्हें इसमें शामिल होने के लिए प्रस्ताव दे रहा है. इसी बीच उसने यूक्रेन को भी नाटो में शामिल होने का प्रस्ताव दिया था. जोकि साल 2010 में खारिज हो गया था. लेकिन साल 2019 में वोलोदिमीर जेलेंस्की के राष्ट्रपति बनने के बाद नाटो के साथ यूक्रेन का मिलाने का काम तेज हो गया.
जिसके बाद से रूस ने यूक्रेन के सीमा पर अपनी सैन्य गतिविधियों को तेज कर दिया. साथ ही रूस नाटो से लिखित रूप में चाहता है कि वो पूर्व में पड़ने वाले देशों से दूर रहे. साथ ही रूस चाहता है कि नाटो की सैनिक पोलैंड और बाल्टिक के पास से अपनी सेनाएं हटा लें. रूस नहीं चाहता कि यूक्रेन कभी नाटो में शामिल हो क्योंकि अगर यूक्रेन नाटो में शामिल हो गया तो नाटो की सेना उसके नजदीकी सीमा के पास आकर तैनात हो जाएंगे. इसके अलावा यूक्रेन की सीमा चार नाटो देशों से मिलती है और रूस की भौगोलिक स्थिति भी इस विवाद का बड़ा कारक है, क्योंकि रूस के बाद यूक्रेन दूसरा सबसे बड़ा देश है. साथ ही काल सागर के पास यूक्रेन की कई अहम पोत भी है. पूरे यूरोप में नेचुरल गैस की सप्लाई की एक तिहाई भाग यहीं से होता है, जिसका मुख्य पाइपलाइन यूक्रेन से होकर जाता है. इसलिए यूक्रेन पर कब्जा होने से इस पाइपलाइन की भी सुरक्षा हो सकती है.
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