Know Your Prime Ministers: Pandit Jawaharlal Nehru To Narendra Damodar Das Modi

“हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी जिस को भी देखना हो कई बार देखना” निदा फ़ाज़ली साहब का ये मशहूर शेर हमारे प्रधानमंत्रियों पर लेखों की इस श्रृंखला Know Your Prime Ministers पर बहुत सटीक बैठता है.

हमारे प्रधानमंत्रियों पर लेखों की इस श्रृंखला Know Your Prime Ministers

.को हमने बहुत ही ध्यान और कुशलता से, विभिन्न पुस्तकों, भाषणों और साक्षात्कारों की मदद से तैयार किया है. इस आर्टिकल में इन प्रसिद्ध नेताओं के जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में जानकारी दी गई. जिन्होंने आज़ादी के बाद के भारत को आज के भारत के रूप में बदलने में मदद की. भारतीय राजनीतिक दिग्गजों के बारे में कुछ अनसुनी और उम्मीद भरी हुई प्रेरक कहानियों को हम प्रस्तुत करते हैं. आप अपने विवेक के आधार पर इन्हें अपना आदर्श मान भी सकते है और नहीं भी. इन आर्टिकल्स का एक मात्र उद्देश्य यह है कि हमारे सभी प्रधानमंत्रियों से जुड़ी हुई अधिकतर जानकारी आप तक पहुंचे.

(In this series of articles on our prime ministers, very carefully and articulately drafted with the help of various books ,speeches and interviews, is given an insight into the lives of these  known leaders that helped India transform into what it is today, we leave to you an inquisitive, insatiably curious and hopefully inspiring tale of many such Indian political stalwarts.)

पंडित जवाहर लाल नेहरू: पंडित नेहरू से भारत के पहले प्रधानमंत्री बनने का सफर

‘’मैं चाहता हूं कि मेरी मुट्ठीभर राख प्रयाग के संगम में बहा दी जाए जो हिन्दुस्तान के दामन को चूमते हुए समंदर में जा मिले, लेकिन मेरी राख का ज्यादा हिस्सा हवाई जहाज से ऊपर ले जाकर खेतों में बिखेर दिया जाए, वो खेत जहां हजारों मेहनतकश इंसान काम में लगे हैं, ताकि मेरे वजूद का हर जर्रा वतन की खाक में मिलकर एक हो जाए.’’ ये किसी फिल्म के हीरो का डायलाग नहीं है. बल्कि आज़ाद भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की अंतिम इच्छा थी.

नेहरू को लेकर अक्सर कई सारे सवाल लोगों के जहन आते है. जो उन्हें नेहरू के ख़िलाफ़ या फिर साथ, लाकर खड़ा कर देते है. जिनका अगर सही जवाब जनता को न पता हो तो वही नेहरू को सृजनकर्ता न समझकर एक विवादित नेहरू की कहानी गढ़ देती है. नेहरू को लेकर कई सारे सवाल है जैसे,

  • कैसे थे नेहरू और सरदार पटेल के रिश्ते?
  • नेहरू और गांधी में क्यों थे मतभेद?
  • क्या नेहरू सच में भगत सिंह से मिलने लाहौर गए थे?
  • क्या नेहरू की ही वजह से कश्मीर में धारा 370 और आर्टिकल 35ए आया था?
  • कब और कैसे आये नेहरू और एडविना माउंटबेटन एक-दूसरे के करीब ?

 इस तरह के कई सारे पहलू है जो नेहरू की शख़्सियत को विवादों में लाकर खड़ा कर देते है  जिसके बाद विचारों और मतभेदों का एक लम्बा सिलसिला देखने को मिलता है. नेहरू ने जिस परिस्थिति में देश का बागड़ोर अपने हाथों में एक प्रधानमंत्री के तौर पर संभाला था, वो काफी चुनौती पूर्ण थीं. लेकिन नेहरू ने बिखरते भारत को आधुनिक भारत तक पहुँचाया और देश को एक बेहतर भविष्य की ओर अग्रसर किया.

Know Your Prime Ministers: Pandit Jawaharlal Nehru To Narendra Damodar Das Modi (gettyimages)

भारतीय राजनीति में नेहरू का आगमन

साल 1912 में नेहरू इंग्लैंड से अपनी पढ़ाई पूरी करके भारत वापस आते हैं और इसी साल बिहार के बांकीपुर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में बतौर प्रतिनिधि शामिल होते हैं. 

Read More: Know Your Prime Ministers: V. P. Singh (1931-2008)(लोगों ने देश के पूर्व प्रधानमंत्री वी पी सिंह को देश का कंलक क्यों कहा? जानिए उनके लिए कैसे आया ये संबोधन ‘राजा नहीं रंक हैं, देश का कलंक हैं’)

नेहरू की महात्मा गांधी से मुलाकात इसके चार साल बाद साल 1916 में होती है.  इसी साल ही इनका विवाह कमला नेहरू से हो जाता है और साल 1917 में इनकी इकलौती संतान इंदिरा प्रियदर्शनी का जन्म होता है.  नेहरू का भारतीय राजनीति में झुकाव साल 1917 से ही शुरू होता है. जब एनी बेसेंट ने होमरूल संस्थान का गठन किया तब नेहरू सीधे तौर पर इस लीग से जुड़े. साल 1919 में जलियांवाला बाग हत्या कांड के बाद नेहरू बहुत दुःखी होते है और इसके बाद महात्मा गाँधी से प्रेरित होकर भारतीय राजनीति में कदम रखते है.

साल 1920-22 के बीच गांधी जी के द्वारा चलाये गए असहयोग आंदोलन में नेहरू ने हिस्सा लिया. इसी बीच वो पहली बार जेल भी गए.

31 दिसंबर साल 1929 को लाहौर में होने वाले ऐतिहासिक कांग्रेस के अधिवेशन में नेहरू को अध्यक्ष चुना गया और नेहरू ने इस अधिवेशन में संपूर्ण स्वराज की घोषणा की थी. इस अधिवेशन में नेहरू ने कहा था कि, “हमारा लक्ष्य सिर्फ स्वाधीनता प्राप्त करना है. हमारे लिए स्वाधीनता है पूर्ण स्वतंत्रता. ” साथ ही जब पहली बार इस अधिवेशन में तिरंगा फहराया गया था तब नेहरू ने कहा था कि,” एक बार फिर आपको याद रखना है कि अब यह झंडा फहरा दिया गया है. जब तक एक भी हिंदुस्तानी मर्द, औरत, बच्चा जिंदा है, यह तिरंगा झुकना नहीं चाहिए.’ 

पंडित नेहरू को तीन बार कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए चुना गया था और ये साल रहे 1936,1937 और 1946.

नेहरू की जेल यात्राएं

नेहरू अपने पूरे जीवन काल में कुल 9 बार जेल गए थे. साल 1922 में वो पहली बार जेल गए थे और आखिरी बार उनकी जेल यात्रा साल 1945 में खत्म हुआ था. नेहरू सबसे कम समय से लेकर अधिक समय तक कारावास में रहे थे. सबसे कम 12 दिन और अधिकतम 1,041 दिनों के लिए.

कैसे हुआ नेहरू का प्रधानमंत्री पद के लिए चुनाव और क्यों गांधी ने नहीं दिया सरदार पटेल का साथ ?

इसकी नींव सन् 1946 में ही रख दी जाती है जब कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए पंडित नेहरू को चुना जाता है. साल 1940 से ही मौलाना आजाद कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर कार्यरत थे लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारत में आज़ादी की लहर तेज होता देख अंग्रेजों ने देश में अंतरिम कैबिनेट गठन का प्रस्ताव रखा जिसका प्रेसिडेंट अंग्रेजी वायसराय होना था और इसका वाइस प्रेसिडेंट कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष को बनना था. इस समय मौलाना आजाद अध्यक्ष पद छोड़ना नहीं चाहते थे और इसके बारे में उन्होंने अपनी किताब ‘इंडिया विन्स फ्रीडम’ (India Wins Freedom) में भी थोड़ा सा घुमा-फिरा कर किया है. साथ ही गांधी के दबाव में उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद अप्रैल 1946 नये अध्यक्ष के लिए कांग्रेस समिति में चुनाव होना था. इसमें महात्मा गांधी, नेहरू, सरदार पटेल, आचार्य कृपलानी, राजेंद्र प्रसाद, खान अब्दुल गफ्फार खान सहित कई बड़े कांग्रेसी नेता शामिल थे. गांधी शुरू से ही नेहरू को अध्यक्ष बनाना चाहते थे लेकिन सरदार पटेल को लेकर कांग्रेस समिति के सदस्यों की ज्यादा सहमति थी. नेहरू एक जन नेता थे, जबकि पटेल की पहुँच संगठन के अंदर तक थी.

इसी कारण पटेल को 15 प्रांतीय समितियों में से 12 ने अपना समर्थन दिया था. इसके बारे में उस समय कांग्रेस के महासचिव आचार्य जे बी कृपलानी ने महात्मा गाँधी से कहा,  “बापू ये परपंरा रही है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव प्रांतीय कांग्रेस कमेटियां करती हैं, किसी भी प्रांतीय कांग्रेस कमेटी ने जवाहर लाल नेहरू का नाम अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित नहीं किया है. 15 में से 12 प्रांतीय कांग्रेस कमेटियों ने सरदार पटेल का और बची हुई 3 कमेटियों ने मेरा और पट्टाभी सीतारमैया का नाम प्रस्तावित किया है.” साथ ही दिलचस्प बात ये थीं कि इस में किसी ने नेहरू का नाम तक प्रस्तावित नहीं किया था, समर्थन तो दूर की बात थी.

लेकिन गांधी ने अपने  दबाव के बल पर नेहरू का नाम प्रस्तावित करवाया था. इसके बारे में 1946 में मौलाना आजाद को लिखे एक पत्र में गांधी कहते हैं, ‘अगर मुझसे पूछा जाए तो मैं जवाहर लाल को ही प्राथमिकता दूंगा. मेरे पास इसकी कई वजह हैं.’  

gettyimages

इसी के कारण बिना मन के आचार्य कृपलानी ने नेहरू के नाम का समर्थन करते हुए कहा, ‘बापू की भावनाओं का सम्मान करते हुए मैं जवाहर लाल का नाम अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित करता हूं.’ पटेल गांधी का बहुत सम्मान करते थे और यही कारण था कि उन्होंने उनकी बात नहीं टाली.

गांधी ने नेहरू को क्यों चुना था इसका जवाब उन्होंने एक साल बाद 1947 में उस समय के पत्रकार दुर्गा दास को बताते हुए कहा था कि,’जवाहर लाल नेहरू बतौर कांग्रेस अध्यक्ष अंग्रेजी हुकूमत से बेहतर तरीके से समझौता वार्ता कर सकते थे.  महात्मा गांधी को ऐसा लगता था कि जवाहर लाल अंतरराष्ट्रीय मामलों में भारत का प्रतिनिधित्व सरदार पटेल से बेहतर कर पाएंगे.’

नेहरू कब और किन हालात में देश के पहले प्रधानमंत्री बने?

भारत के इतिहास में 14 अगस्त 1947 की रात काफी भयावह और काली रात रही होगी. जहां एक तरफ अगले दिन 15 अगस्त 1947 को देश स्वतंत्र होने वाला था. तो वही दूसरी तरफ रातों-रात 14 अगस्त को ही देश का बटवारा हो गया.

नेहरू से लेकर सरदार वल्लभ भाई पटेल और गांधी हर कोई इस स्थिति को देख रहा था. देश को 200 साल की गुलामी से आज़ादी तो मिली लेकिन देश को इसकी बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ी. देश के बटवारे के बाद जहां कुछ रियासतें पाकिस्तान में चली गई तो वही बाकि की 522 रियासतों को जोड़कर एक करना भी बहुत जरुरी था.

3 जून 1947 को ही नया भारत कैसा होगा? वो कैसा दिखेगा? उस को लेकर सबसे पहली घोषणा लार्ड लुई माउंटबेटन ने ऑल इंडिया रेडियो पर किया. साथ ही कॉंग्रेस इस बात से सहमत है इसकी घोषणा खुद नेहरू ने किया. नेहरू के लिए ये पल बहुत ही संवेदनशील थे.

इस प्रकार नेहरू एक ऐसी परिस्थिति में भारत के प्रधानमंत्री बनकर उभरते है जब देश के दो भाग हो चुके थे. पड़ोसी देश पाकिस्तान से रिश्ते बेहतर नहीं थे और वो कश्मीर को हथियाने के लिए बार-बार हमला करने की कूटनीति अपना रहा था. 15 अगस्त 1947 को नेहरू को भारत के प्रधानमंत्री पद का कार्यभार सौंपा गया. इसके बाद साल 1952 में पहली बार नेहरू चुनाव जीतकर संवैधानिक प्रक्रिया से प्रधानमंत्री बने थे और साल 1964 तक इनका कार्यकाल रहा.

कैसे थे नेहरू और सरदार पटेल के रिश्ते?

नेहरू को लेकर एक सबसे बड़ा विवादित विषय इस बात को बताया जाता है कि सरदार पटेल और नेहरू के बीच जो रिश्ते थे वो सही नहीं थे. अक्सर इन दोनों को एक दूसरे का दुश्मन बनाकर परोसा जाता है. ये बात और है कि दोनों में विचारों को लेकर मतभेद थे  लेकिन नेहरू और पटेल के आपसी रिश्ते इन सभी आरोपों और मिथ्या कल्पनाओं से काफी बेहतर थे या नहीं इसका अंदाज़ा आप इन दोनों के बीच के पत्र व्यवहार  से लगा सकते है.

1 अगस्त 1947 को पंडित नेहरू ने भारत की आज़ादी से पहले मंत्रिमंडल के स्वरूप पर हो रही चर्चा को लेकर पटेल को ख़त लिखा:

” कुछ हद तक औपचारिकताएं निभाना जरूरी होने से मैं आपको मंत्रिमंडल में सम्मलित होने का निमंत्रण देने के लिए लिख रहा हूँ. इस पत्र का

 कोई महत्व नहीं है क्योंकि आप तो मंत्रिमंडल के सुदृढ़ स्तम्भ है.”

gettyimages

इसके जवाब में सरदार पटेल ने नेहरू को 3 अगस्त के दिन पत्र लिखा:

” आपके 1 अगस्त के पत्र के लिए अनेक धन्यवाद. एक-दूसरे के प्रति हमेशा जो अनुराग और प्रेम रहा है था लगभग 30 वर्ष की हमारी जो अखंड मित्रता है, उसे देखते हुए औपचारिकता के लिए कोई स्थान नहीं रह जाता.”

“आशा है कि मेरी सेवाएं बाकी के जीवन के लिए आपके अधीन रहेंगी. आपको उस ध्यये की सिद्धि के लिए मेरी शुद्ध और सम्पूर्ण वफ़ादारी और निष्ठा प्राप्त होगी, जिसके लिए आपके जैसा त्याग और बलिदान भारत के अन्य किसी पुरुष ने नहीं किया है.”

”हमारा सम्मिलन और संयोजन अटूट और अखंड है और उसी में हमारी शक्ति निहित है. आपने अपने पत्र में मेरे लिए जो भावनाएं व्यक्त की हैं, उसके लिए मई आपका कृतज्ञ हूँ.”

तो जब आप इस प्रकार का संवाद उन दोनों के पत्राचार में देखते है तो ये स्पष्ट दिखाई देता है कि ये दोनों अपने आपसी रिश्तों को लेकर कितने अच्छे थे. दोनों में कोई मनभेद नहीं दिखाई देता.

नेहरू और पटेल में कई मतभेद रहे है. जिनका जिक्र अक्सर मिलता रहता है,लेकिन उन दोनों के बीच मनभेद की कोई जगह नहीं थी. नेहरू एक स्वप्नदर्शी राजनेता थे तो वहीं सरदार पटेल एक यथार्थवादी व्यक्ति थे. सरदार पटेल की मजबूत पकड़ संगठन पर थी,लेकिन लोकप्रियता में नेहरू बहुत आगे थे.

नेहरू और गांधी में क्यों थे मतभेद?

गांधी ने नेहरू से अनेकों मतभेद होने के बावजूद नेहरू को ही भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में चुना. जब देश आज़ाद हुआ उस समय सरदार पटेल 71 और नेहरू 56 साल के थे. कांग्रेसी चाहते थे सरदार पटेल प्रधानमंत्री बने लेकिन गांधी ने देश का बागडौर नेहरू के हाथों में सौंपी.

नेहरू और गांधी के रिश्तों को लेकर कई सारे सवाल होते है. निःसंदेह दोनों में वैचारिक मतभेद था. जब पहली 1916 में गांधी और नेहरू मिले थे तो उस समय नेहरू 27 साल के और गांधी 47 साल के थे. ये क्रिसमस का दिन था जब दोनों पहली बार मिले थे. अभी नेहरू को इंग्लैंड से पढ़ाई करके वापस भारत आए हुए सिर्फ 4 साल ही बीते थे. गांधी को नेहरू निहायती घमंडी लगते थे और उनके अनुसार उनमें कोई खास बात नहीं थी. नेहरू इस दौर में यूरोपियन पोशाक पहना करते थे. नेहरू आधुनिकतावादी सोच के युवा थे और उन्हें गांधी की अध्यात्मिकतावादी भाषा मध्ययुगीन और पुनरुत्थानवादी प्रतीत होती थी.

gettyimages

नेहरू और गांधी के मतभेदों को आप नेहरू की आत्मकथा में स्पष्ट देख सकते है. जहां पर नेहरू ने गांधी से अपनी पहली मुलाक़ात की जिक्र कुछ इस अंदाज़ में किया है-

“हम सब दक्षिण अफ्रीका में उनके वीरतापूर्ण संघर्ष के प्रशंसक थे, किन्तु हम में से बहुतेरे नवयुवकों को वे बहुत ही दूर और भिन्न और अराजनीतिक लगते थे.”

तो वहीं गांधी ने जब 6-7 साल पहले अपने आत्मकथा सत्य के साथ मेरे प्रयोग साल 1922 से 1924 के बीच लिखी तो उसमें नेहरू का कोई जिक्र नहीं था.

हालाँकि गांधी लोगों सहानुभूतिपूर्वक परखते थे. उन्होंने नेहरू के शुरूआती चिडचिपन को समझने की कोशिश की थी. जिसमें उन्हें सफलता भी मिली थी. गाँधी के अनुसार इसका कारण नेहरू का एकाकीपन था.

बाद में नेहरू को गांधी के आकर्षण ने अपनी तरफ खींच लिया और नेहरू गांधी से बहुत प्रभावित हुए. जिसका जिक्र उनकी आत्मकथा में मिलता है.  ये प्रभाव और आकर्षण ऐसा बढ़ा कि नेहरू एकदम से गांधी  की तरफ खींचने लगे. इसके पीछे की वजह थी गांधी की निडरता. मोती लाल नेहरू अपने बेटे से बहुत प्रेम करते थे और नेहरू भी अपने पिता को बहुत चाहते थे. लेकिन इन दोनों के बीच में जब गांधी का आगमन हुआ तब मोतीलाल को लगा की उनका बेटा उनसे दूर होता जा रहा है. अपने बेटे को अपने से दूर जाने से रोकने के लिए मोतीलाल ने खुद गांधी से निटकता स्थापित किया. जिसका जिक्र नेहरू ने अपनी किताब में किया है कि ” पिता मोतीलाल का गांधी की ओर खिंचे चले जाने का एक बड़ा कारण यही था कि बेटा जवाहरलाल गांधी के आकर्षण में कैद हो गया था.”

उस समय इन तीनों की तिकड़ी इतनी मशहूर हुई थी कि लोग मजाक में इन तीनों को ‘फादर, सन एंड होली घोस्ट’ के नाम से पुकारते थे.

क्या नेहरू सच में भगत सिंह से मिलने लाहौर गए थे?

नेहरू को लेकर एक बात हमेशा की जाती है कि वो कभी भगत सिंह से मिलने नहीं गए. उन्होंने चाहकर भी भगत सिंह को नहीं बचाया, जबकि वो उतने बड़े वकील थे.

ये बात पूर्णतः सत्य है कि नेहरू और भगत सिंह दोनों के वैचारिक मत भिन्न-भिन्न रहे है. नेहरू ने वैचारिक तौर पर भगत सिंह का समर्थन नहीं किया था लेकिन ये बात पूर्णतः गलत भी है कि भगत सिंह से मिलने के लिए नेहरू नहीं गए थे.  नेहरू और भगत सिंह में भी वैचारिक मतभेद देखने को मिलते है लेकिन बावजूद इसके नेहरू भगत सिंह के द्वारा स्वतंत्रता के लिए किय गए संघर्षों को स्वीकार किया है.

the tribune

‘द ट्रिब्यून’ अखबार में 10 अगस्त 1929 में छपे रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि 8 अगस्त 1929 को नेहरू भगत सिंह और उनके साथियों से मिलने के लिए लाहौर जेल में गए थे. इसका जिक्र नेहरू ने अपनी आत्मकथा में भी किया है.

क्या नेहरू की ही वजह से कश्मीर में धारा 370 और आर्टिकल 35ए आया था?

नेहरू के जीवनकाल में एक सबसे बड़ा और गंभीर मुद्दा रहा है कश्मीर का. कई बार कश्मीर और अनुच्छेद 370 के लिए नेहरू को ही विलेन बनाकर पेश किया जाता है. जिसके कारण आधुनकि भारत के निर्माता नेहरू की छवि को धूमिल करने की कोशिश हर कोई करता रहता है. लेकिन कश्मीर के लिए अकेले नेहरू जिम्मेदार थे या नहीं इसका उत्तर किसी के पास शायद ही हो.लेकिन कश्मीर मसले को लेकर नेहरू ने कुछ हद तक गलतियां की थी जिनका जिक्र कई सारी किताबों में मिलता है. कई लोग और इतिहासकार ये मानते है कि नेहरू ने जो भरोसा शेख़ अब्दुला पर दिखाया वो सही नहीं था. शेख़ अब्दुला और राजा हरि सिंह दोनों में नहीं बनती थी, साल 1938 में हरि सिंह ने शेख़ को घाटी में अपने खिलाफ़ नारे-बाजी और जनसभाएं करने के आरोप में बंदी बना लिया था. नेहरू ने भारत की आज़ादी के बाद कश्मीर विलय को लेकर शेख़ अब्दुला पर भरोसा इसलिए किया था क्योंकि 1938 के आस-पास घाटी में अब्दुला एक ऐसे नेता के रूप में उभरे थे जो सेक्युलर था. लेकिन बाद में धारा 370 और 35 ए का करार भी शेख़ अब्दुला और नेहरू की दोस्ती की ही वजह से हुआ.

कश्मीर को लेकर नेहरू की एक और गलती इतिहासकारों को लगती है और इसका जिक्र ‘द स्टोरी ऑफ़ इंटीग्रेशन ऑफ़ इंडियन स्टेट्स’ में मिलता है कि नेहरू ने ही कश्मीर विषय को लेकर यूएन सभा में समझौते की बात की थी. पीयूष बबेले की किताब ‘नेहरू: मिथक और सत्य’ में 23 दिसंबर 1947 का एक जिक्र मिलता हैं जिसमें नेहरू ने कहा था ‘ये मामला हम संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा समिति के सामने पेश करेंगे. शायद सुरक्षा समिति अपना एक कमीशन भेजे. तब तक हम अपनी सैन्य कार्रवाई जारी रखेंगे. बेशक हम इन कार्रवाइयों को जोरों से चलाने की आशा करते हैं. हमारा अगला कदम दूसरी घटनाओं पर निर्भर होगा, इस अवसर पर इस बात को पूरी तरह गुप्त रखना होगा.’ अगर नेहरू ने ऐसा नहीं किया होता तो शायद कश्मीर की स्थिति ऐसी नहीं होती.

देश का विभाजन हो गया, भारत और पाकिस्तान अस्तित्व में आएं. इसी समय देश की कई सारी रियासतों में आंतरिक कलह शुरू हो गई. कुछ रियासते पाकिस्तान के साथ चली गई. तो कुछ भारत में रही. 

ऐसे में दो प्रमुख रियासते थी जूनागढ़ जहाँ का शासक मुसलमान था और आबादी 80 %हिन्दू बाहुल्य तो दूसरी तरफ कश्मीर में स्थिति जूनागढ़ के उलट थी. यहाँ का शासक हिन्दू और आबादी मुस्लिम बाहुल्य थी.

13 सितंबर को जूनागढ़ के नवाब ने पाकिस्तान के साथ विलय कर लिया. इसके बाद भारत और पाकिस्तान दोनों ने कश्मीर को लेकर अपनी दांवेदारी पेश की. लेकिन कश्मीर के राजा हरि सिंह ने कश्मीर को लेकर दोनों देशों के साथ 12 अगस्त 1947 को साथ यथास्थिति संबंधी समझौते पर हस्ताक्षर कर दिया. समझौते का साफ मतलब था कि जम्मू-कश्मीर किसी देश के साथ नहीं जाकर बल्कि एक स्वतंत्र हिस्सा बना रहेगा. लेकिन पाकिस्तान ने इसका उल्ल्घंन करते हुए 22 अक्टूबर 1947 को कश्मीर में हमला कर दिया. 24 अक्टूबर तक हमलावर श्रीनगर तक आ पंहुचे. ऐसे में राजा हरि सिंह ने भारत सरकार से मदद की गुहार लगाई और भारत के साथ कश्मीर का विलय करने के लिए ”इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन” यानी शामिल होने के समझौते पर हस्ताक्षर किया. ये बात साफ है कि नेहरू ने ही शेख़ अब्दुला के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए अनुच्छेद 370 का प्रावधान किया जबकि बाबा साहब अम्बेडकर इसके खिलाफ थे.  अनुच्छेद 370 और आर्टिकल 35 ए का पूरा जिक्र ‘द स्टोरी ऑफ़ इंटीग्रेशन ऑफ़ इंडियन स्टेट्स’ में है.

कब और कैसे आये नेहरू और एडविना माउंटबेटन एक-दूसरे के करीब 

ये बात शुरू होती मार्च 1947 से जब पहली बार लॉर्ड माउंटबेटन अपने परिवार के साथ भारत आते हैं. उनके साथ उनकी पत्नी लेडी माउंटबेटन यानी एडविना माउंटबेटन और बेटी पामेला हिक्स भी आती है. उसी दिन से भारत के लोगों में नेहरू और एडविना माउंटबेटन की बढ़ती नजदीकियों को लेकर कानाफूसी शुरू हो गई थी. जिसके बारे में सलमान रूश्दी के चचा शाहिद हमीद ने 31 मार्च 1947 को अपनी डायरी में इस प्रकार लिखा था, “माउंटबेटन दंपत्ति के भारत पहुंचने के 10 दिनों के भीतर ही एडविना और नेहरू की नज़दीकियों पर भौंहें उठना शुरू हो गई हैं.”

साथ ही नेहरू और एडविना की बढ़ती नजदीकियां कांग्रेस के की बड़े नेताओं से भी छुपी नहीं थी. ऐसे ही कांग्रेस एक बड़े और कद्दावर नेता मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने भी अपनी किताब ” इंडिया विन्स फ्रीडम” में नेहरू और एडविना माउंटबेटन की नजदीकियों का जिक्र कुछ इस प्रकार किया है, “नेहरू माउंटबेटन से तो मुतासिर हैं ही, लेकिन उससे कहीं ज़्यादा वो लेडी माउंटबेटन से मुतासिर हैं.”

कई सारे भारतीय को तो ताज्जुब तब हुआ जब एक पार्टी में नेहरू एडविना के पैरों के पास जमीन पर बैठ गए.

nehru-edwina gettyimages

दरअसल भारत आने के बाद लॉर्ड माउंटबेटन ने गवर्नमेंट हाउज़ में एक गार्डन पार्टी का आयोजन किया. इस पार्टी में लोग ये देखकर हैरान रह गए कि उनका भावी प्रधानमंत्री एडविना माउंटबेटन के पैरों के पास जमीन पर बैठा हुआ था. ऐसा इस वजह से हुआ था कि पार्टी में भीड़ ज्यादा होने के कारण कुर्सीयाँ कम पड़ गई थी और नेहरू एडविना के पैरों पास जमीन पर बैठ गए. लेकिन लोगों के मन में ये बात चलती रही कि आखिर नेहरू एडविना के पैरों के पास ही क्यों बैठे. उसी शाम एडविना अपनी बेटी पामेला के साथ नेहरू के घर भी गई थी जिसके बारे में लॉर्ड माउंटबेटन को खबर तक नहीं थी.

नेहरू और एडविना एक ही स्वीमिंग पूल में साथ-साथ तैरते थे

नेहरू लॉर्ड वेवेल के जमाने से गवर्नमेंट हाउस में बने स्वीमिंग तैरने जाते थे. लेकिन लोगों के बीच सबसे ज्यादा बाते तब शुरू हुई जब एडविना माउंटबेटन भी नेहरू के साथ ही तैरती हुई दिखाई देने लगी.

मेरी माँ नेहरू को करती थी प्यार- पामेला

माउंटबेटन की बेटी पामेला हिक्स ने नेहरू और एडविना के रिश्तों के बारे में अपनी किताब ‘डॉटर ऑफ़ एम्पायर’ में काफी कुछ लिखा है. एक बार पामेला ने बीबीसी को दिया अपने इंटरव्यू में बता था कि,  “मेरी माँ और पंडितजी एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे. पुराना मुहावरा ‘सोलमेट’ उन पर पूरी तरह लागू होता था. मेरे पिता बहुर्मुखी थे, जबकि मेरी माँ अपने-आप में ही रहना पसंद करती थीं.”

पामेला ने आगे बताया कि, “वो बहुत लंबे समय तक विवाहित रहे थे और एक दूसरे के बहुत नज़दीक साथी भी थे लेकिन इसके बावजूद मेरी माँ अकेलेपन की शिकार थीं. तभी उनकी मुलाक़ात एक ऐसे शख़्स से हुई जो संवेदनशील, आकर्षक, सुसंस्कृत और बेहद मनमोहक था. शायद यही वजह थी कि वो उनके प्यार में डूब गई.”

एडविना का हाथ पकड़ने से लेकर उन्हें अपनी बाहों तक भर लेते थे नेहरू

नेहरू और एडविना माउंटबेटन का रिश्ता बहुत ही करीब का था और यही कारण था कि नेहरू एडविना का हाथ पकड़ने में संकोच नहीं करते थे. नेहरू की जीवनी लिखने वाले स्टेनली वॉलपर्ट अपनी किताब ‘नेहरू-अ-ट्रिस्ट विद डेस्टिनी में इसका जिक्र करते हुए लिखा है,  “मैंने एक बार नेहरू और एडविना को ललित कला अकादमी के उद्घाटन समारोह में देखा था. मुझे ये देख कर आश्चर्य हुआ था कि नेहरू को सबके सामने एडविना को छूने, उनका हाथ पकड़ने और उनके कान में फुसफुसाने से कोई परहेज़ नहीं था.”

स्टेनली ने आगे लिखा है कि, “माउंटबेटन के नाती लॉर्ड रेम्सी ने एक बार मुझे बताया था कि उन दोनों के बीच महज़ अच्छी दोस्ती थी, इससे ज्यादा कुछ नहीं. लेकिन खुद लॉर्ड माउंटबेटन एडविना को लिखी नेहरू की चिट्ठियों को प्रेम पत्र कहा करते थे. उनसे ज़्यादा किसी को अंदाज़ा नहीं था कि एडविना किस हद तक अपने ‘जवाहार’ को चाहती थीं.”

gettyimages

नेहरू के ऊपर जीवनी लिखने वाले एमजे अकबर अपनी किताब  नेहरू द मेकिंग ऑफ इंडिया में इस बात जिक्र किया कि नेहरू ने एडविना माउंटबेटन को नैनीताल में एक कमरे में अपनी बाहों में भरा था. एमजे अकबर अपनी किताब में लिखते हैं कि,  “1949 से 1952 के बीच रूसी के पिता सर होमी मोदी उत्तर प्रदेश के राज्यपाल हुआ करते थे. नेहरू नैनीताल आए हुए थे और राज्यपाल मोदी के साथ ठहरे हुए थे. जब रात के 8 बजे तो सर मोदी ने अपने बेटे से कहा कि वो नेहरू के शयन कक्ष में जा कर उन्हें बताएं कि मेज़ पर खाना लग चुका है और सबको आपका इंतज़ार है.”

“जब रूसी मोदी ने नेहरू के शयनकक्ष का दरवाज़ा खोला तो उन्होंने देखा कि नेहरू ने एडविना को अपनी बाहों में भरा हुआ था. नेहरू की आँखें मोदी से मिलीं और उन्होंने अजीब सा मुंह बनाया. मोदी ने झटपट दरवाज़ा बंद किया और बाहर आ गए. थोड़ी देर बाद पहले नेहरू खाने की मेज़ पर पहुंचे और उनके पीछे-पीछे एडविना भी वहाँ पहुंच गईं.”

लंदन के शिखरसम्मेलन के दौरान कुछ एडविना के साथ ही बिताते थे नेहरू

एडविना जब वापस लंदन लौट गई तो इसके बाद भी इनका मिलना जुलना जारी रहा. नेहरू जब भी लंदन के शिखर सम्मेलन में जाते थे तो अपना ज्यादा से ज्यादा समय एडविना के साथ ही बिताते हैं. हालांकि भारतीय दूतावास में काम करने वाले लोगों को ये बात अच्छी नहीं लगती थी. नेहरू और एडविना के लंदन में हुए मुलाकातों का जिक्र भारतीय लेखक खुशवंत सिंह ने अपनी आत्मकथा ‘ट्रूथ, लव एंड लिटिल मेलिस’ में इस प्रकार से लिखा है, “नेहरू के विमान ने जब हीथ्रो के रनवे को छुआ तो काफ़ी रात हो चुकी थी. अगली सुबह जब मैं दफ़्तर पहुंचा तो मेरी मेज़ पर कृष्ण मेनन का नोट रखा हुआ था कि मैं उनसे तुरंत मिलूँ.”

खुशवंत सिंह आगे लिखते हैं, “मेरी मेज़ पर ही ‘द डेली हैरल्ड अख़बार’ पड़ा हुआ था जिसके पहले पन्ने पर ही नेहरू और लेडी माउंटबेटन की तस्वीर छपी थी, जिसमें वो अपना नाइट गाउन पहने हुए नेहरू के लिए अपने घर का दरवाज़ा खोल रही थीं. उसके नीचे कैप्शन था, ‘लेडी माउंटबेटन्स मिड नाइट विज़ीटर.”

“ख़बर में ये भी लिखा गया था कि लॉर्ड माउंटबेटन इस समय लंदन में नहीं हैं. जब मैं मेनन के पास पहुंचा तो वो मुझ पर दहाड़े, ‘तुमने आज का हैरल्ड देखा? प्रधानमंत्री तुमसे बहुत नाराज़ हैं.’ मैंने कहा, ‘मेरा इससे कोई लेना-देना नहीं. मुझे क्या पता था कि पंडितजी हवाईअड्डे से अपने होटल जाने के बजाए माउंटबेटन के घर जा पहुंचेंगे.”

नेहरू के हाथ से लिखे प्रेम पत्र

नेहरू और एडविना के बीच पत्राचार एडविना की अंतिम सांस तक जारी रहा. तकरीबन 12 सालों तक नेहरू एडविना को प्रेम पत्र लिखते रहे. 1960 में एडविना माउंटबेटन का बोर्नियो में जब निधन हो गया तो उनके बेड के पास नेहरू के कई सारे प्रेम पत्र पाये गए थे. जिन्हें बाद में लॉर्ड माउंटबेटन को दे दिया गया था.

पामेला हिक्स ने बीबीसी को बताते हुए कहा था कि,  “अपनी वसीयत में भी मेरी माँ ने नेहरू के लिखे सारे ख़त मेरे पिता के लिए छोड़े थे. एक पूरा सूटकेस इन ख़तों से लबालब भरा हुआ था. मैं उन दिनों ‘ब्रॉडलैंड्स’ में अपने पिता के साथ रह रही थी. एक दिन उन्होंने मुझसे कहा, क्या तुम इन ख़तों को मेरे लिए पढ़ सकती हो? हालांकि मैं समझता हूँ कि 99.9 फ़ीसदी इन ख़तों में ऐसा कुछ नहीं निकलेगा जिससे मुझे तकलीफ़ पहुंचे.”

पामेला आगे कहती हैं कि, ””कुछ दिनों तक मैं ऐसा करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई. लेकिन कुछ दिनों बाद मैंने उन ख़तों को पढ़ा. वो ग़ज़ब के थे. वो असल में भारत को बनाने की एक डायरी थी. उन ख़तों की शुरुआत हमेशा एक वाक्य से होती थी कि वो मेरी माँ को कितना ‘मिस’ कर रहे हैं और वो उनके लिए बहुत ख़ास हैं.”

“ख़त का अंत भी वो एक निहायत निजी टिप्पणी से करते थे. उनमें कुछ भी शारीरिक नहीं था. ये सारे ख़त सुबह दो बजे से चार बजे के बीच लिखे गए थे और इन सभी को नेहरू ने अपने हाथ से लिखा था.”

एडविना ने नेहरू से किया था लिपस्टिक लाने की फरमाइश

नेहरू और एडविना की नजदीकियां इतनी बढ़ गई थी कि वो उनसे किसी भी तरह के उपहार की फरमाइश कर देती थी.

gettyimages: nehru and edwina

इसके बारे में पामेला बताती है, “शायद 1948 या 49 के क्रिसमस के दिनों की बात है. नेहरू केनेडा की सरकारी यात्रा पर जा रहे थे. उन दिनों इग्लैंड में अभी भी राशनिंग जारी थी. मेरी माँ मैक्सफ़ैक्टर लिपिस्टिक लगाती थीं. उन्होंने नेहरू को लिखा, क्या आप कैनेडा से मेरे ले मैक्सफ़ैक्टर लिपस्टिक ला सकते हैं?”

“हमें इसमें कुछ भी अजूबा नहीं लगा. लेकिन अगर भारत में लोगों को इसका पता चलता कि एक पूर्व वायसराय की पत्नी ने प्रधानमंत्री से एक लिपस्टक लाने के लिए कहा है, तो वहाँ बात का बतंगड़ बन जाता.”

क्या नेहरू और एडविना माउंटबेटन के रिश्ते जिस्मानी थें?

इसके बारे में पामेला सिरे से इंकार करती है. लेकिन इंदिरा गांधी पर किताब लिखने वाले ज़रीर मसानी के विचार पामेला से अलग है उनका मानना है कि नेहरू और एडविना माउंटबेटन के बीच शारीरिक संबंध था. जिसके बारे में ज़रीर मसानी एंड्रू लोनी को दिया एक इंटरव्यू में कहते हैं, “मेरे माता-पिता नेहरू को बहुत अच्छी तरह से जानते थे. नेहरू को सेक्स से परहेज़ नहीं था. मैं ये जानता हूँ कि वो एक दूसरे को रूमानी पत्र लिखा करते थे. पचास के दशक में वो जब भी लंदन जाते थे, वो उनके साथ रात बिताया करते थे.”

“हालांकि उनकी ये हरकत भारतीय विदेश सेवा के अधिकारियों को पसंद नहीं आती थी. उनमें से एक मेरे चाचा थे जो बाद में भारत के विदेश सचिव बने. मुझे ऐसा नहीं लगता कि नेहरू एडविना के साथ नहीं सोए होंगे.”

क्यों कहा जाता है नेहरू को आधुनिक भारत का निर्माता

पंडित नेहरू आधुनकि भारत के निर्माता कहे जाते है क्योंकि नेहरू जब देश के प्रथम प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए थे तब देश की हालत बहुत खस्ता थी. देश के कई हिस्से टूटने के कगार पर थे.

पूरा विश्व और भारत अभी द्वितीय विश्व युद्ध के भीषण विनाश से उभर रहा था कि देश का विभाजन हो गया. ऐसे में एक प्रधान मंत्री के तौर पर जो काम नेहरू ने किया उस योगदान की ही वजह से उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता कहा जाता है. नेहरू के ये 5 काम उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता होने की उपाधि दिलाने का काम करते है.

नेहरू ने दिए भारत कोआधुनिक मंदिर

नेहरू ने शिक्षा से लेकर उद्योग जगत में बेहतर काम किया. नेहरू ने देश में आईआईटी , आई आई एम और विश्वविद्यालयों की स्थापना की. साथ ही उन्होंने भाखड़ा नांगल बाँध,और बोकारो इस्पात कारखाने की स्थापना की. जिन्हें नेहरू देश का आधुनिक मंदिर मानते थे.

  • पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत
  • मजबूत लोकतंत्र
  • भारत को बनाया हमेशा के लिए अखंड
  • विदेश नीति और पंचशील सिद्धांत

http://www.firstpost.com/living/why-the-edwina-mountbatten-jawaharlal-nehru-relationship-continues-to-intrigue-4192395.html

5 thoughts on “Know Your Prime Ministers: Pandit Jawaharlal Nehru To Narendra Damodar Das Modi”

  1. Pingback: Emergency (25th June1975): Democracy Died That Day(क्या इंदिरा गांधी ने अपनी सत्ता बचाने के लिए लगाया आपातकाल था? जानिए आपातकाल क

  2. Pingback: Know Your Prime Ministers: V. P. Singh (1931-2008)(लोगों ने देश के पूर्व प्रधानमंत्री वी पी सिंह को देश का कंलक क्यों कहा? जानिए उ

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top