Parveen Shakir Biography Shayari: उर्दू साहित्य की पहली फेमिनिस्ट शायरा परवीन शाकिर की अनसुनी दस्तान

Parveen Shakir Biography Shayari:”कुछ तो हवा भी सर्द थी, कुछ तो था तिरा ख्याल भी, दिल को ख़ुशी के साथ-साथ, होता रहा मलाल भी.”
ये अल्फाज़ ही काफी है परवीन शाकिर (Parveen Shakir) की शख्सियत को बयां करने के लिए. उर्दू साहित्य जगत की एक ऐसी महिला शायरा जिसने पहली बार उर्दू की नज़्मों और गज़लों के द्वारा फेमिनिज्म शब्द से न सिर्फ पाकिस्तान बल्कि दुनिया के पूरे आवाम को परिचित कराया था. परवीन शाकिर की ग़ज़लों में एक मजबूत और सशक्त महिला दिखाई देती है. जो नज़्मों के माध्यम से अपने दिल के हर एक भाव को जाहिर करने में सक्षम हैं.

Parveen Shakir Biography Shayari: परवीन शाकिर का जन्म 24 नवंबर 1952 को पाकिस्तान के करांची सिंध में हुआ था. परवीन शाकिर एक मशहूर शायरा होने के साथ-साथ एक शिक्षक और सिविल सर्विस में थी. बतौर अध्यापिका उन्होंने नौ साल तक काम किया उसके बाद 1982 में वो सिविल सेवा में चुनी गई और उन्हें कस्टम विभाग में नियुक्त किया गया.

एक सबसे मजेदार बात ये है कि परवीन शाकिर एक ऐसी शायरा रही है जिनसे लिखित परीक्षा में उन्हीं के बारे में पूछा गया था.जब वो सेंट्रल सुपीरियर सर्विस की परीक्षा दे रही थी.
परवीन शाकिर की कविताओं में एक लड़की की पत्नी,माँ और अंत तक एक स्त्री का सफर साफ दिखाई देता है. एक ऐसी स्त्री जो पत्नी भी, माँ भी, और कवयित्री होने के साथ-साथ रोजी रोटी कमाने वाली महिला भी. परवीन शाकिर उर्दू साहित्य जगत में एक युग का प्रतिनिधित्व रती हुई दिखाई देती है. इनकी नज़्मों में सादगी के साथ-साथ लयबद्धता भी है और नज़ाकत भी.

Parveen Shakir Biography Shayari First Book

इनकी पहली रचना ‘खूशबू’ साल 1977 में प्रकाशित हुई थी जिसकी प्रस्तावना में उन्होंने लिखा था- ” जब हौलै से चलती हुई हवा ने फूल को चूमा तो खूशबू पैदा हुई.” परवीन शाकिर की ग़ज़लों और नज़्मों को बारीकी से अध्ययन करने पर पता चलता है कि जैसे ये आत्मकथा है जो गज़लों और नज़्मों के रूप में पिरोई गई है.

Parveen Shakir Biography Shayari and Her Husband

परवीन शाकिर ने प्रेम विवाह किया था लेकिन इनका रिश्ता तलाक के दहलीज़ पर आकार बिखर गया. इनके पति का नाम सैयद नासिर अली था. इनका एक बेटा भी है सैयद मुराद अली.
परवीन शाकिर बहुत ही कम उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया. 26 दिसंबर 1994 को महज़ 42 साल की उम्र में इस्लामाबाद पाकिस्तान में इनका इंतकाल हो गया. जब ये 26 दिसंबर को कार से अपने दफ्तर जा रही थी तभी एक ट्रैक ने इन्हें टक्कर मार दी और मौके पर ही इनकी मौत हो गई. इस सड़क का नाम बाद में इन्हीं के नाम पर रखा गया.

Awards and Career

परवीन शाकिर को साल 1990 में पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान प्राइड ऑफ परफार्मेंस से नवाज़ा गया.
परवीन शाकिर आज़ाद नज़्म लिखती थी. इनकी नज़्मों में ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव को साफ़ देखा जा सकता है. इनकी रचनाओं में फैज़ साहब और फ़राज़ साहब की झलक मिलती है लेकिन परवीन शाकिर (Parveen Shakir) उनकी नकल नहीं करती थी. परवीन शाकिर ने एक और नज़्म नविश्ता को उन्होंने अपने युवा बेटे को संबोधित करते हुए लिखा है कि उसे इस बात पर शर्म नहीं आनी चाहिए कि उसे एक कवि के बेटे के रूप में जाना जाता है न कि एक पिता के बेटे के रूप में.परवीन शाकिर ने एम ए में डिग्री ली, उसके बाद उन्होंने पीएचडी भी की. हावर्ड यूनिवर्सिटी से भी इन्होंने सार्वजनिक प्रशासन में एम ए किया था.

परवीन शाकिर की हिज्र पर 10 चुनिंदा शेर (Top 10 Sher On Separation By Parveen Shakir)

वैसे तो परवीन शाकिर ने कई सारी नज़्मों और ग़ज़लों को लिखा है. लेकिन उनकी 10 चुनिंदा हिज्र पर लिखे ये शेर बहुत फेमस है. जो इस प्रकार से हैं……
मैं सच कहूंगी मगर हार जाऊंगी
वो झूठ बोलेगा और ला-जवाब कर देगा

वो न आएगा हमें मालूम था इस शाम भी
इंतज़ार उसका मगर कुछ सोच कर करते रहे

कैसे कह दूं कि मुझे छोड़ दिया है उसने
बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की

अब तो इस राह से वो शख़्स गुज़रता भी नहीं
अब किस उम्मीद से दरवाज़े से झाँके कोई

हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा
क्या ख़बर थी कि रग-ए-जां में उतर जाएगा

वो मुझ को छोड़कर जिस आदमी के पास गया
बराबरी का भी होता तो सब्र आ जाता

यूं बिछड़ना भी बहुत आसां न था उससे मगर
जाते जाते उसका वो मुड़कर दोबारा देखना

कांप उठती हूं मैं ये सोचकर तन्हाई में
मेरे चेहरे पर तिरा नाम न पढ़ ले कोई

उस के यूं तर्क-ए-मोहब्बत का सबब होगा कोई
जी नहीं ये मानता वो बेवफ़ा पहले से था

अपनी रुस्वाई तिरे नाम का चर्चा देखूँ
इक ज़रा शेर कहूँ और मैं क्या क्या देखूँ

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Tehzeeb Hafi Top 10 Shayari

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