Sahir Ludhianvi: हर फिक्र को धुएं में उड़ने वाले साहिर असल जिंदगी में अकेलेपन से डरते थे, जानिए इसके पीछे की कहानी

मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया, हर फ़िक्र को धुँएं में उड़ाता चला गया..
साहिर लुधियानवी (Sahir Ludhianvi) साहब एक ऐसी शख्सियत है, जन्हें याद किए बिना रहा नहीं जा सकता है. उर्दू साहित्य जगत के एक ऐसे शायर जिन्होंने शायरी के साथ-साथ हिंदी सिनेमा जगत में भी अपना एक खासा मुक़ाम हासिल किया. साहिर बहुत ही मशहूर ज़िंदा दिल शायरों में से एक थें, उन्होंने ‘हर पल का शायर’ होने का ख़िताब अपने नाम किया.
साहिर लुधियानवी का जन्म 8 मार्च 1925 को पंजाब के लुधियाना में एक ज़मीदार परिवार में हुआ था, इनका बचपन इनकी माँ के साथ बीता, क्योंकि इनके पिता ने इनकी माँ को छोड़कर दूसरी शादी कर ली थी. बचपन से ही साहिर के मन में माँ को लेकर हमदर्दी और बाप के लिए नफरत रही, क्योंकि उन्होंने माँ के ऊपर हो रही जत्तियों को करीब से देखा था. साहिर साहब आज अगर ज़िंदा होते तो 100 साल से ज्यादा के होते लेकिन प्रतिभावान व्यक्ति कहाँ ज़्यादा दिनों के लिए इस दुनिया में आते हैं? साहिर भी उन्हीं में से एक थे.

एकाकी जीवन ने साहिर को अंदर से तोड़ दिया था (Sahir Ludhianvi)
फिल्म कभी-कभी का ओ गीत भले अमिताभ बच्चन पर फिल्माया गया हो लेकिन उसके एक-एक बोल जो साहिर साहब ने लिखा था, वो उन्हीं पर सटीक बैठता है.साहिर लुधियानवी के साथ एक सबसे बड़ी ट्रेडजी ये रही कि ये तमाम उम्र अकेले ही रहे. इनके मोहब्बत की कहानी दो नामी हस्तियों के साथ जरूर जुड़ा मगर उन्होंने उन से शादी नहीं की. एक थीं अमृता प्रीतम और दूसरी सुधा मल्होत्रा. साहिर के ये दो शेर इन दोनों के साथ इनके रिश्तों को बखूबी दर्शाते हैं.
पहला अमृता प्रीतम के लिए
‘महफ़िल से उठ जाने वालो तुम लोगों पर क्या इल्ज़ाम
तुम आबाद घरों के वासी मैं आवारा और बदनाम’

और दूसरा सुधा मल्होत्रा के लिए
‘चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों’.

ज़िंदगी के हर एक हादसों को बेहतरीन गीतों में ढालने वाले साहिर के जीवन का असल सच क्या था, यह राज़ तो उन्हीं के साथ चला गया.

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बी. आर. चोपड़ा ने अपने बंगले में छोड़ा था साहिर के कमरा
साहिर लुधियानवी के दोस्त अक्सर उनके लिए कहते थे कि, ‘एक 6 फुट कद वाला एक ऐसा आदमी जिसे पार्टी के लिए कपड़े पहनने का बिल्कुल भी तरीका नहीं था,’ मगर बहुत कम लोग जानते थे कि साहिर के लिए महान निर्देशक बी. आर. चोपड़ा के बंगले में एक कमरा यूंही खुला रखा था कि साहिर जब चाहें तब आकर वहाँ कुछ भी लिखा सकते थे.

अकेलेपन से डरते थे साहिर (Sahir Ludhianvi was afraid of loneliness)
साहिर लुधियानवी ने जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव देखें थे. उनके जीवन से जुड़े कई पहलुओं में से एक पहलु ये भी था कि उन्हें अकेलेपन से बहुत डर लगता था. इसी के कारण वो हमेशा अपने पास दोस्तों की महफिल जमायें रहते. मगर ये महफिल कितने देर तक? और कितने घंटे चलती? दोस्तों को भी आखिर घर जाना होता था. आखिर में तो इनकी माँ ही थीं जो इन्हें अपने पास बैठा कर इनसे बातें करती थीं.

तमाम उम्र अकेले ही रहे साहिर
इतना बड़ा शायर, इतना बड़ा नाम और गीतकार तमाम उम्र अकेलेपन में ही जिया. साहिर ने ज़िन्दगी के ग़मों और तकलीफों से जो कुछ भी सीखा वो सब उन्होंने स्याही के माध्यम से पन्नों पर उतार दिया. 25 अक्टूबर 1980 को साहिर लुधियानवी इस दुनिया को अलविदा कहकर चले गए, मगर आज अपने मौत के चालीस साल बाद भी साहिर लुधियानवी अपने गीतों के माध्यम से ज़िंदा है और युगों तक रहेंगे.

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